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शीतला माता की कथा और शीतलाष्टमी व्रत: संतान सुख और रोग शांति का पर्व


शीतलाष्टमी और शीतला माता: आस्था, विज्ञान और स्वास्थ्य से जुड़ा महापर्व


यह लेख शीतलाष्टमी व्रत और शीतला माता की संपूर्ण जानकारी, कथा, पूजा विधि, वैज्ञानिक महत्व और सामाजिक प्रभाव पर आधारित एक विस्तृत शोधपूर्ण आलेख है। इसमें माता के स्वरूप, लोक कथाओं, स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े पहलुओं के साथ-साथ प्रमुख मंदिरों और रीति-रिवाजों का भी वर्णन किया गया है। यह लेख न केवल धार्मिक आस्था बल्कि स्वच्छता, स्वास्थ्य जागरूकता और समाज में एकता का संदेश भी देता है। माता के महत्व को समझने और इस पावन पर्व की गहराई में जाने के लिए यह लेख अवश्य पढ़ें।


भूमिका

भारत विविधता में एकता का देश है, जहाँ हर पर्व और उत्सव का कोई न कोई वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व छिपा होता है। इन्हीं पर्वों में एक विशेष पर्व है शीतलाष्टमी, जिसे बसोड़ा, शीतला अष्टमी और शीतला सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्यतः शीतला माता की पूजा-अर्चना के लिए मनाया जाता है, जिनका सम्बन्ध विशेष रूप से स्वास्थ्य, विशेषकर चेचक और संक्रामक बीमारियों से जुड़ा है।

ग्रामीण भारत में शीतला माता एक लोक देवी के रूप में पूजी जाती हैं, जिनका आशीर्वाद परिवार की सुरक्षा, विशेषकर बच्चों की रक्षा के लिए माँगा जाता है। शीतलाष्टमी का पर्व चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और यह होली के तुरंत बाद आता है।

इस लेख में हम शीतला माता के जन्म, उनकी कथा, पूजा विधि, व्रत महात्म्य, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वैज्ञानिक पक्ष और सामाजिक महत्व सहित हर पहलू का विस्तृत अध्ययन करेंगे।


शीतला माता का परिचय

शीतला माता को शीतलता, शांति और स्वास्थ्य की देवी माना जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य और करुणामयी है। पुराणों के अनुसार शीतला माता भगवान शिव की शक्ति हैं और माता पार्वती का ही एक रूप हैं। विशेष रूप से स्कंद पुराण में शीतला माता का उल्लेख मिलता है, जिसमें माता का वाहन गधा, हाथ में झाड़ू, नीम की डाली, दंड और पानी का घट बताया गया है।


शीतला माता का स्वरूप

  • वाहन: गधा
  • हाथ में: झाड़ू, नीम की पत्तियाँ, ठंडा जल भरा कलश
  • वस्त्र: पीले रंग के
  • स्वरूप: सौम्य व करुणामयी

यह प्रतीक इस बात का है कि माता गंदगी को साफ कर रोगों का नाश करती हैं। झाड़ू और नीम की पत्तियाँ रोग नाशक हैं और शीतल जल शांति और ठंडक का प्रतीक है।


शीतला माता की कथा

माता की कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रमुख कथा स्कंद पुराण में मिलती है।

मुख्य कथा

बहुत समय पहले पृथ्वी पर चेचक, चिकनपॉक्स और खसरा जैसी बीमारियाँ फैल गईं, जिनसे बच्चे और बड़े सभी परेशान हो गए। चारों ओर हाहाकार मच गया। तब माता पार्वती ने शीतला देवी का रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतार लिया और अपने साथ एक कटोरी में चेचक रोग के विषाणु लेकर आईं। उन्होंने घोषणा की कि जो लोग मेरी पूजा करेंगे, मैं उनके घरों में यह बीमारी नहीं फैलाऊँगी। मैं उन्हें रोगमुक्त करूँगी।

शीतला माता अपने झाड़ू और नीम की पत्तियों से बीमारियों का नाश करती हैं। तभी से शीतला माता का व्रत और पूजा विशेषकर महिलाओं द्वारा संतान की रक्षा और परिवार में स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए किया जाता है।

एक अन्य लोककथा

एक गाँव में एक महिला ने माता का व्रत नहीं किया और ताजा गरम खाना बनाकर खाया। माता रुष्ट हो गईं और उसके घर महामारी फैला दी। पश्चाताप करने पर उस महिला ने ठंडा भोजन किया, माता की पूजा की और तब जाकर उसके परिवार की रक्षा हुई। इसी कथा से यह परंपरा चली कि शीतलाष्टमी के दिन ठंडा भोजन खाया जाता है।


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शीतलाष्टमी व्रत की विधि

शीतलाष्टमी का व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इस दिन मुख्य पूजा शीतला माता की होती है और संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य व रोग मुक्ति की कामना की जाती है।

व्रत की तैयारी और पूजन सामग्री:

  • माता की मूर्ति या चित्र
  • नीम की पत्तियाँ
  • ठंडा जल
  • ठंडा भोजन (बसोड़ा)
  • कच्चा दूध, दही, गुड़, हल्दी, रोली
  • झाड़ू
  • हल्दी और चावल
  • दीपक, अगरबत्ती

पूजा विधि:

1. व्रती महिला सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करती है।

2. घर के मंदिर या किसी पवित्र स्थान पर शीतला माता की प्रतिमा स्थापित की जाती है।

3. नीम की पत्तियों, जल और झाड़ू से माता का पूजन होता है।

4. ठंडा किया हुआ भोजन माता को भोग लगाया जाता है।

5. माता की कथा सुनी जाती है।

6. परिवार सहित दिनभर ठंडा भोजन ग्रहण किया जाता है।

विशेष मान्यता:

  • शीतलाष्टमी के दिन अग्नि का स्पर्श वर्जित होता है।
  • इस दिन नया भोजन नहीं बनाया जाता।
  • एक दिन पूर्व बनाए गए भोजन (बसोड़ा) का ही सेवन किया जाता है।

शीतला माता


वैज्ञानिक और स्वास्थ्य दृष्टिकोण

शीतला माता का पर्व और उससे जुड़ी मान्यताएँ वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं।

1. संक्रमण नियंत्रण का संदेश:

माना जाता है कि शीतला माता बीमारियों की देवी हैं, जो संक्रमण को नियंत्रित करती हैं। उनकी पूजा के माध्यम से सफाई और स्वच्छता का संदेश दिया गया है।

2. नीम का महत्व:

नीम में प्राकृतिक औषधीय गुण होते हैं, जो संक्रमण और रोगों को समाप्त करते हैं। माता की पूजा में नीम का उपयोग स्वास्थ्य की रक्षा का प्रतीक है।

3. ठंडा भोजन क्यों?

गर्मियों के आरंभ में जब तापमान बढ़ने लगता है, तब भोजन जल्दी खराब होने लगता है। ऐसे में एक दिन पहले का भोजन खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है और शरीर मौसम के बदलाव के लिए तैयार होता है।

4. चेचक और वायरस से जुड़ी मान्यता:

ऐतिहासिक रूप से चेचक एक महामारी थी। ग्रामीण भारत में शीतला माता की पूजा उसी महामारी के रोकथाम के लिए शुरू हुई, जिससे सामूहिक तौर पर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता था।


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शीतला माता के प्रसिद्ध मंदिर

भारत में माता के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें मुख्य रूप से:

1. शीतला माता मंदिर, गुड़गांव (हरियाणा): यह देश का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ दूर-दूर से भक्त पूजा के लिए आते हैं।

2. शीतला माता मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश): यहाँ शीतला माता की पूजा विशेष रूप से चैत्र मास में होती है।

3. शीतला माता मंदिर, जयपुर (राजस्थान): यहाँ के मंदिर में विशाल मेला लगता है और माता को विशेष भोग अर्पित किया जाता है।

4. शीतला माता मंदिर, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार आदि में भी कई प्रसिद्ध स्थान हैं।


लोक मान्यताएँ और रीति-रिवाज

  • शीतला अष्टमी के दिन विवाहिता महिलाएँ उपवास रखती हैं और संतान सुख की कामना करती हैं।
  • महिलाएँ अपने बच्चों के सिर में नीम के पत्ते घुमा कर शीतला माता से आशीर्वाद लेती हैं।
  • इस दिन शीतला माता की झांकियाँ निकाली जाती हैं।
  • पूजा के बाद ‘बसोड़ा’ बाँटा जाता है, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

शीतला माता और चेचक का संबंध

पुराने समय में जब चेचक जैसी बीमारियों का इलाज नहीं था, तब लोग माता की शरण में जाते थे। माना जाता था कि माता प्रसन्न होंगी तो चेचक समाप्त हो जाएगी। यह विश्वास आज भी ग्रामीण इलाकों में गहराई से रचा-बसा है।

मान्यता:

  • चेचक निकलने पर लोग मरीज को शीतला माता का माना हुआ मानते हैं।
  • मरीज के पास नीम की पत्तियाँ रखी जाती हैं।
  • इलाज के साथ माता की पूजा होती है।

समाज में माता पूजा का महत्व

1. सामूहिक एकजुटता: गाँव-गाँव में सामूहिक पूजन और मेलों का आयोजन होता है, जो सामाजिक एकता को बढ़ाता है।

2. स्वास्थ्य जागरूकता: इस व्रत के माध्यम से साफ-सफाई और स्वच्छता का महत्व समझाया जाता है।

3. पर्यावरण संरक्षण: नीम के पौधे का महत्व बढ़ता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है।

4. स्त्री शक्ति का जागरण: यह पर्व महिलाओं को सामाजिक रूप से जोड़ता है और उनके सामूहिक शक्ति के भाव को जाग्रत करता है।


शीतला माता के स्तुति मंत्र और आरती

मंत्र

वंदे शीतलमातां च सर्वरोगनिवारिणीम्।
यस्तां पूजयते भक्त्या सर्वसिद्धिं स विन्दति।।

आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।
तुमको निशदिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता।।

शीतला माता और शीतलाष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसमें गहरे वैज्ञानिक और सामाजिक संदेश छिपे हैं। यह पर्व स्वास्थ्य, स्वच्छता, प्रकृति और सामूहिक चेतना का पर्व है।

आज के समय में जब नए-नए वायरस और बीमारियाँ फैल रही हैं, माता की पूजा और इस पर्व का महत्त्व और बढ़ जाता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि प्रकृति, स्वच्छता और परंपराओं के साथ सामंजस्य ही एक स्वस्थ और समृद्ध जीवन की कुंजी है।


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Khushal Luniya

Khushal Luniya is a young kid who has learned HTML, CSS in Computer Programming and is now learning JavaScript, Python. He is also a Graphic Designer. He is playing his role by being appointed as a Desk Editor in Luniya Times News Media Website.

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