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हनुमान जी बन्दर, जटायु गिद्ध और जाम्बवान रीछ नहीं, विद्वान मनुष्य थे


Ghevarchand Aarya
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Ghevarchand Aarya is a Author in Luniya Times News Media Website.

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मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम चन्द्र जी महाराज के समकालीन लिखित वाल्मीकि रामायण में महावीर हनुमान जी को आदर्श ब्रह्मचारी वेदों का विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता बताया जाता है। इसी तरह सुग्रीव जटायु और जाम्बवान को भी वाल्मीकि रामायण में विद्वान बताया गया है । लेकिन वर्तमान में जब हम तुलसीदास रामायण में हनुमान जी और सुग्रीव को बंदर जटायु को गिद्ध और जाम्बवान का रीछ के रूप में चित्र देखने को मिलते हैं इस चित्रो को देखकर हमारे मन में अनेक प्रश्न भी उठते हैं। जैसे- क्या हनुमान सुग्रीव बाली आदि वास्तव मे बन्दर थे? क्या जटायु एक पक्षी था क्या जाम्बवान रीछ था।

इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि अज्ञानी लोग जिन्होंने कभी वाल्मिकि रामायण देखी या पढ़ी ही नहीं ऐसे लोग महावीर हनुमान का नाम का परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते है।
वाल्मिकि रामायण में आये “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ “बन्दर” होता है। परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला मनुष्य। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहां का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है। उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते है। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का शास्त्रों में बोध नहीं होता। सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते है उसमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती हैं। परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता, अतः यह सत्य है कि की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र है। हकिकत नहीं।

  • भगवान राम हनुमान जी को विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता बता रहे हैं
    रामायण के किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान जी से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले-
    न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
    न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ||
    (रामायण 4/3/28)
    अर्थात् “ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें (हनुमान जी ने) सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार स्वाध्याय कर अभ्यास किया है, क्यूंकि इतने समय तक बोलने पर भी इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती है”।

सीता के सामने हनुमान जी की विद्वता
रामायण सुंदर कांड (30/18-20) में जब अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते है- “यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूंगा।”
इस प्रमाण से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।

बालि पुत्र अंगद का चोदह गुण सम्पन्न होना
हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ है। हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे। बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान। चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद। राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता। भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहां से हो सकते है?

हनुमान जी उड़कर नहीं तैरकर लंका गए थे।
एक शंका हमारे समक्ष आती है कि क्या हनुमान जी उड़ कर अपनी पुंछ की सहायता से समुद्र पार कर लंका में गये थे? हनुमान जी के विषय में यह भ्रान्ति अनेक बार सामने आती है कि वह उड़ कर समुद्र कैसे पार कर गए ? क्यूंकि मनुष्य द्वारा उड़ना संभव नहीं है? सत्य यह है कि हनुमान जी ने उड़ कर नहीं अपितु तैर कर समुद्र को पार किया था। रामायण में किष्किन्धा कांड के अंत में यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया गया है। सम्पाती के वचन सुनकर अंगद आदि सब वीर समुद्र के तट पर पहुँचे, तो समुद्र के वेग और बल को देखकर सबके मन खिन्न हो गये।

अंगद ने सौ योजन के समुद्र को पार करने का आवाहन किया। युवराज अंगद के सन्देश को सुनकर वानरों ने 100 योजन के समुद्र को पार करने में असमर्थता दिखाई। तब अंगद ने कहा कि मैं 100 योजन तैरने में समर्थ हूँ। पर वापिस आने कि मुझमें शक्ति नहीं है। तब जाम्बवान ने कहा आप हमारे स्वामी है आपको हम जाने नहीं देंगे। इस पर अंगद ने कहा यदि मैं न जाऊं और न कोई और पुरुष जाये, तो फिर हम सबको मर जाना ही अच्छा है। क्यूंकि कार्य किये बिना, सुग्रीव के राज्य में जाना भी मरना ही है।

अंगद के इस साहस भरे वाक्य को सुनकर जाम्बवान बोले-राजन मैं अभी उस वीर को प्रेरणा देता हूं, जो इस कार्य को सिद्ध करने में सक्षम है। इसके पश्चात हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण करा प्रेरित किया गया। हनुमान जी बोले-“मैं इस सारे समुद्र को बाहुबल से तर सकता हूं

और मेरे उरु, जंघा के वेग से उठा हुआ समुद्र जल आकाश को चढ़़ते हुए के तुल्य होगा। मैं पार जाकर उधर की पृथ्वी पर पांव धरे बिना, अर्थात विश्राम करे बिना फिर उसी वेग से इस ओर आ सकता हूं। मैं जब समुद्र में जाऊंगा, अवश्य खिन्न हुए लता, वृक्ष आकाश को उड़ेगे, अर्थात अन्य स्थान का आश्रय ढूंढेंगे।”
(किष्किन्धा काण्ड 67/26)

हनुमान जी का समुद्र पार करना
इसके पश्चात हनुमान समुद्र में उतरने के लिए एक पर्वत के शिखर पर चढ़ गये। उनके वेग से उस समय प्रतीत होता था कि पर्वत कांप रहा है। हनुमान जी के समुद्र में प्रविष्ट होते ही समुद्र में ऐसा शब्द हुआ जैसे कि मेघ गर्जन से होता है। और हनुमान जी ने वेग से उस महासमुद्र को देखते ही देखते पार कर लिया।

(हिंदी भाषा में एक प्रसिद्द मुहावरा है” हवा से बातें करना” अर्थात अत्यंत वेग से जो चलता या तैरता या गति करता है, उसे हवा से बातें करना कहते है।) हनुमान जी ने इतने वेग से समुद्र को पार किया कि उपमा में हवा से बातें करना परिवर्तित होकर हवा में उड़ना हो गया। इसी से यह भ्रान्ति हुई कि हनुमान जी हवा में उड़ते थे। जबकि सत्य यह है कि वह ब्रह्मचर्य के बल पर हवा के समान तेज गति से कार्य करते थे।

अंगद की माता तारा के मानवीय गुण
अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय (किष्किन्धा कांड 16/12 ) में बालि ने कहा था कि- “सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण है। जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता।” ऐसे गुण विशेष मनुष्यों में ही संभव है। बन्दरो में नहीं।

सुग्रीव का राजतिलक हवन मंत्रों से करना
किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये। (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।
क्या बंदरों में शास्त्रीय विधि से अन्तिम संस्कार और राजतिलक संस्कार होता हैं?

जटायु गिद्ध नामक पक्षी नहीं था
इसी तरह जटायु भी गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था। तब जटायु को देख कर सीता ने कहां –
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् ।
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणाप॥
(अरण्यक 49/38)
हे आर्य जटायु ! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भांति उठाये ले जा रहा है।
कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् ।
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम ॥
( रामायण 68/6)
अर्थात -यहां सीताजी द्वारा जटायु को आर्य और द्विज कहा गया है। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। आर्य और द्विज दोनों मनुष्य के गुण वाचक शब्द है । आगे
रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा –
जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः ।
(अरण्यक 50/4)
अर्थात- मैं गृध कूट पर्वत का भूतपूर्व राजा हूं, और मेरा नाम जटायु है। यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य के राजा नहीं हो सकते। इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं कि जटायु पक्षी नहीं थे, अपितु एक मनुष्य थे। जो अपनी वृद्धावस्था में उस समय की परम्परा अनुसार वानप्रस्थाश्रम में प्रवेश कर जंगल में वास कर तपस्या कर रहे थे।

जाम्बवान रीछ नहीं औषधियों के ज्ञाता वैद्य थे
जहां तक जाम्बवान के रीछ होने का प्रश्न है। यह भी एक भ्रान्ति है। रामायण में वर्णन मिलता है कि जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे। तब किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के पास परामर्श लेने गये। तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था।

इसका सन्दर्भ रामायण के युद्ध कांड (सर्ग 74/31-34) में मिलता है।
आप्त काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से ही संकट का हल पूछा जाता है। जैसे युद्धकाल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिमान और विचारवान व्यक्ति से ही पूछा जाता है। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं। दूसरे बुद्धि से परे की बात है। इसलिए स्वीकार्य नहीं है। इसलिए जाम्बवान का भी रीछ जैसा पशु नहीं अपितु महाविद्वान होना ही संभव है।

इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धि पूर्वक पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हनुमान, बालि, सुग्रीव जटायु जाम्बवान आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य थे। उन्हें बन्दर पक्षी या रीछ आदि मानना केवल मात्र एक कल्पना है और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन करना है। जो एक तरह से झूठ ही है। तब प्रश्न उठता है की हिन्दूओं के शास्त्रों में यह बुद्धि विरूद्ध विवरण किसने मिलाया इसका जबाब यह है की यह सब मिश्र देश के भारत में आकर बसे चितलपावन ब्राह्मणों का किया धरा है। इन्होंने ही वेद विरुद्ध कल्पित शास्त्र और पुराण आदि रचकर इस देश का बिगाड़ किया है।

न्यूज़ डेस्क

"दिनेश लूनिया, एक अनुभवी पत्रकार और 'Luniya Times Media' के संस्थापक है। लूनिया 2013 से पत्रकारिता के उस रास्ते पर चल रहे हैं जहाँ सत्य, जिम्मेदारी और राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं।

One Comment

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