हर साल पहाड़ों में क्यों फटते हैं बादल? वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

गौरव कुमार, चंडीगढ़
हर साल मानसून आते ही पहाड़ी राज्यों से बादल फटने की खबरें सामने आने लगती हैं।
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड या फिर उत्तर-पूर्वी भारत — कहीं न कहीं बादल फटने की घटनाएं तबाही का कारण बनती हैं। अचानक आई बाढ़, मलबे में दबे घर, और पल भर में तबाह हो चुकी बस्तियां… ये दृश्य अब आम होते जा रहे हैं।
लोगों के मन में अक्सर एक सवाल उठता है — आख़िर बादल फटते क्यों हैं? और सबसे बड़ा सवाल, क्या ये सिर्फ पहाड़ों में ही क्यों होते हैं? मैदानों में तो बारिश होती है, लेकिन ऐसी तबाही शायद ही देखने को मिलती है। तो क्या पहाड़ों की बनावट इसका कारण है या मौसम की कोई चाल?
इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों पहाड़ी इलाकों में ही सबसे ज़्यादा बादल फटने की घटनाएं होती हैं, इसके पीछे क्या है वैज्ञानिक वजह, और क्या हम इस तबाही से बच सकते हैं?
बादल फटने की असली वजह क्या है?
“बादल फटना” यानी Cloudburst एक मौसमीय घटना है, जिसमें बहुत ही कम समय में बेहद भारी मात्रा में बारिश होती है — कभी-कभी तो कुछ मिनटों में ही 100 मिमी से ज्यादा पानी गिर जाता है। यह पानी अगर पहाड़ों पर गिरे, तो नीचे बहने में ज़्यादा वक्त नहीं लगता, और इसी से आती है तबाही।
पहाड़ी इलाकों में बादल फटने के पीछे मुख्य वजह है “ओरोग्राफिक रेनफॉल”। इसका मतलब होता है कि जब नम हवाएं पहाड़ों से टकराती हैं, तो वे ऊपर उठती हैं। ऊपर जाकर ठंडी होती हैं और अचानक भारी मात्रा में पानी गिरता है। अब क्योंकि हवा ऊपर नहीं जा पाती, तो वो पानी एक ही जगह रुक कर गिरता है, और नतीजा होता है — बादल फटना।
इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों की जमीन की बनावट, गहरी घाटियां, और कम दबाव वाले सिस्टम भी इसमें भूमिका निभाते हैं। बारिश का पानी नीचे की ओर तेजी से बहता है, और नदियां मिनटों में उफान पर आ जाती हैं। मैदानी इलाकों में पानी फैल जाता है, पर पहाड़ों में ये तेजी से बहकर सब कुछ अपने साथ बहा ले जाता है।
बादल फटने की घटनाओं में और कौन-कौन से फैक्टर जिम्मेदार हैं?
जलवायु परिवर्तन (Climate Change):
विशेषज्ञ मानते हैं कि बीते कुछ सालों में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हवा में नमी का स्तर काफी बढ़ गया है। इससे बारिश पहले से ज़्यादा भारी और अनियमित हो गई है। जब वायुमंडल में ज़्यादा नमी होती है, तो वह एकसाथ गिरती है और बादल फटने जैसी घटनाएं जन्म लेती हैं।
वनों की कटाई और अंधाधुंध निर्माण:
पहाड़ों पर हो रही भारी निर्माण गतिविधियां, पेड़ों की कटाई और प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को नुकसान पहुंचाना भी एक बड़ा कारण है। जब जमीन पानी सोखने की क्षमता खो देती है, तो बारिश का पानी सीधे बहकर तबाही लाता है।
तापमान में तेज़ उतार-चढ़ाव:
गर्मियों में जब तापमान बहुत अधिक होता है और अचानक कोई ठंडी लहर आती है, तो यह अस्थिरता भी मौसम को उग्र बना सकती है और ऐसे क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं को जन्म देती है।
कितनी घातक हो सकती है यह घटना?
बादल फटना कोई साधारण बरसात नहीं होती — यह कुछ ही मिनटों में पूरी बस्ती उजाड़ सकती है। सड़कें बह जाती हैं, मकान ढह जाते हैं और लोगों की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। 2013 के केदारनाथ हादसे में बादल फटने ने ही हजारों लोगों की जान ली थी। यह घटना एक याद दिलाती है कि पहाड़ों के बीच ये आपदाएं कितनी तेज़ और अकल्पनीय हो सकती हैं।
तो क्या बचा जा सकता है इससे?
बिलकुल, बचाव संभव है — लेकिन सावधानी और समय रहते सतर्कता से। मौसम विभाग की चेतावनियों को गंभीरता से लें। संवेदनशील क्षेत्रों में अनावश्यक यात्रा से बचें, स्थानीय प्रशासन की गाइडलाइन्स का पालन करें।
पहाड़ी इलाकों में निर्माण कार्यों को वैज्ञानिक सलाह के तहत ही करें। जंगलों और प्राकृतिक जल मार्गों को न छेड़ें।
कुदरत का मिज़ाज बदल रहा है, हमें भी बदलनी होगी अपनी सोच
बादल फटना कोई नई घटना नहीं है, लेकिन इसका बढ़ता हुआ ग्राफ चिंता का कारण है। यह केवल मौसम की गड़बड़ी नहीं बल्कि हमारी मानवजनित लापरवाहियों का नतीजा भी है।अगर हम अब भी नहीं जागे, तो पहाड़ों की ये विनाशलीला आगे और भयानक रूप ले सकती है।
कुदरत संकेत दे रही है — वक्त रहते संभल जाना ही समझदारी है।
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