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हिन्दू जनजागृति समिति का आव्हान: ‘वैलेंटाइन डे’ जैसी पश्चिमी कुप्रथाओं का बहिष्कार करें, भारतीय संस्कृति का पालन करें

पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण: एक ऐतिहासिक भूल

14 फरवरी को ‘वैलेंटाइन डे’ के रूप में मनाने की परंपरा, जिसे ईसाई धर्मगुरु पोप ने “नकली संत” बताकर रोमन कैलेंडर से हटा दिया था, भारत में ‘प्रेम दिवस’ के नाम से प्रचलित हो गई है । यह दिवस पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका, फ्रांस, और ऑस्ट्रेलिया में व्यावसायिक उद्देश्यों से शुरू हुआ, जो अब भारत में सांस्कृतिक अधःपतन का प्रतीक बन चुका है।

वैलेंटाइन डे के नकारात्मक प्रभाव

  • 1. अनैतिकता और सामाजिक स्वास्थ्य का पतन– इस दिन अविवाहित युवाओं द्वारा लैंगिक संबंधों में 30% की वृद्धि दर्ज की जाती है। गर्भनिरोधक गोलियों और निरोधों की बिक्री 10 गुना बढ़ जाती है, जिससे अवांछित गर्भधारण और गर्भपात जैसी घटनाएं बढ़ती हैं।  इंटरनेशनल बिजनेस टाइम्स के अनुसार, इस दिन सुसाइड हेल्पलाइन पर सबसे अधिक कॉल आते हैं, जो अकेलेपन और टूटे रिश्तों की मानसिकता को उजागर करता है।
  • 2. बाजारवाद का शिकार- 7 से 14 फरवरी तक “रोज डे”, “चॉकलेट डे”, “किस डे” जैसे आठ दिवसों का चलन भारत में विदेशों से भी अधिक है। यह उपभोक्तावाद को बढ़ावा देता है, जहाँ प्रेम को गुलाब, टेडी बियर और महंगे उपहारों तक सीमित कर दिया गया है।
  • 3. सांस्कृतिक विरोधाभास-
    – हिंदू धर्म में फूल देवी-देवताओं को अर्पित किए जाते हैं, न कि प्रेम प्रदर्शन के लिए। गजरे और तोरण जैसे प्रतीक सात्त्विकता बढ़ाते हैं, जबकि पश्चिमी “बुके” संस्कृति भौतिकवाद को प्रोत्साहित करती है।

भारतीय संस्कृति में प्रेम के उच्च आदर्श

हमारे पौराणिक ग्रंथों में प्रेम के उदाहरण—राधा-कृष्ण का आध्यात्मिक प्रेम, शिव-पार्वती का तपस्या युक्त मिलन, और राम-सीता का कर्तव्यपरक प्रेम—सांसारिक आकर्षण से ऊपर उठकर समर्पण और नैतिकता सिखाते हैं । वसंत पंचमी और शिवरात्रि जैसे पर्व प्रेम, त्याग, और एकता का संदेश देते हैं, जो “वैलेंटाइन डे” से कहीं उच्च हैं।

अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय विरोध

पाकिस्तान का उदाहरण पाकिस्तान के उच्च न्यायालय ने वैलेंटाइन डे को “इस्लाम विरोधी” घोषित कर प्रतिबंध लगाया है। राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने भी इसे मुस्लिम परंपराओं के विरुद्ध बताया।
– भारत में प्रतिरोध: अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने होटल, पार्क, और शैक्षणिक संस्थानों में निगरानी की मांग करते हुए इस दिन को “असामाजिक गतिविधियों का प्रतीक” बताया।

युवाओं से आव्हान: देशहित को प्राथमिकता दें

भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों ने अपना यौवन देश के लिए अर्पित किया। यदि वे “वैलेंटाइन डे” जैसे अवसरों में व्यस्त होते, तो भारत की स्वतंत्रता संभव नहीं होती। हिंदू धर्म का पालन करके ही हम जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं, न कि पश्चिमी कुप्रथाओं के अंधानुकरण से।

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