ReligiousNews

सादड़ी से रघुनाथ पीर की सवारी को किया विदा, जरगाजी पहुंचेगी, कस्बे में किया था रात्रि विश्राम

Farewell to Raghunath Peer's procession from Sadri, will reach zargaji, had a night rest in the town

सादड़ी 

ढालोप स्थित रघुनाथपीर आश्रम से एक दिन पहले जरगाजी के लिए रवाना हुई रघुनाथ पीर की सवारी सादड़ी में रात्रि ठहराव के बाद शुक्रवार को जरगाजी के लिए पुनः रवाना हो गई। अगला रात्रि ठहराव मेवाड़ के कांबा में होगा। तीसरे दिन शनिवार को यह सवारी जरगाजी धाम पहुंचेगी।

गुरुवार काे प्रज्वलित ज्योति के साथ सवारी गिराली, वारा सोलंकियान, मुठाणा होते हुए शीतला नाडी मार्ग से शाम काे सादड़ी पहुंची। रात को मेघवालों का बड़ा बास में रात्रि विश्राम हेतु ठहराव किया। सुबह रघुनाथ पीर की रजत प्रतिमा को सिर पर उठाकर संतों के सानिध्य में भक्त जरगाजी के लिए पैदल रवाना हाे गए। सवारी को स्थानीय लोग सवारी के अलावा सेवा और गत नाम से भी पुकारते हैं।

लगभग एक हजार साल पहले एक संत के पैदल यात्रा करने के रास्ते से आज भी उनकी सवारी पारम्परिक रूप से निकाली जाती है। देसूरी उपखंड के ढालोप गांव में स्थित रथुनाथपीर आश्रम के संत का नाम देशभर में श्रद्धा से लिया जाता है। उन्होंने सत्य,अहिंसा व मानव जाति के कल्याण का संदेश दिया। इसी के चलते उनके बड़ी संख्या में श्रद्धालु हुए। बाद में उनके उत्तराधिकारी भी पीर के रूप में ढालोप की गादी पर गद्दीनशीन होते गए। श्री रघुनाथ पीर फाल्गुन वदी 12 को ढालोप से रवाना होकर पैदल मार्ग से महाशिवरात्रि के दिन जरगाजी पहुंचे थे। तीन दिन की इस यात्रा में उन्होंने सादड़ी व कांबा में रात्रि ठहराव किया था।

ऐसी मान्यता है कि रघुनाथ पीर के पहुंचते ही वहां पर गंगा प्रकट हुई थी, जो आज भी रघुनाथपीर की सवारी के पहुंचते ही जल स्त्रोत के रूप में फूट पड़ती है। तब जाकर जरगाजी का मेला शुरू होता है। बताया जाता है कि रघुनाथपीर ने ढालोप ग्राम में भी दीवार को डेढ़ किलोमीटर से अधिक दूरी तक चलाया था, जिसके बाद उनके जरगाजी जाने की परम्परा को जीवित रखा गया। एक हजार से अधिक वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके प्रति लोगों की श्रद्धा में कमी नहीं आई है, जिससे आज भी प्राचीन पैदल रास्ते से ही उनके उत्तराधिकारी पीर रघुनाथपीर की सवारी को जरगाजी ले जाते हैं। इस सवारी को स्थानीय लोग सवारी के अलावा सेवा और गत नाम से भी पुकारते हैं। जिस मार्ग से यह सवारी गुजरती है। हर गांव की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि वह श्रद्धापूर्वक इसे अगले ग्राम तक पहुंचाएं। रास्ते में पड़ने वाले गावों से गुजरते समय सवारी पर फुल मालाएं चढ़ाने व दर्शन के लिए श्रद्घालुओं की भीड़ उमड़ जाती है।


यह भी पढ़े   महिला की उन्नति पर राष्ट्र की उन्नति निर्भर – पूर्व मंत्री मेघवाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button