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बहादुरी को सम्मान – भीषण सड़क हादसे में घायलों के लिए ”मसीहा” बनकर पहुँची थी दो बहनें

चिकित्सा विभाग ने किया सम्मानित, दोनों को मिलेंगे पांच-पांच हजार

हरसौर

रिपोर्ट – आत्माराम सैनी

कस्बे के किसाननगर तिराहे के पास रहने वाली दो बहनें रेखा माली एवं प्रियंका माली रियल लाइफ की हीरो हैं, ये हम नहीं कह रहे बल्कि उनके काम बोलते हैं। उन्होंने इंसानियत की नई मिसाल कायम की है।

दरअसल बीते दिनों किसाननगर तिराहे पर डंपर-स्कॉर्पियो की भिड़ंत हुई, जिसमें 5 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। जब दोनों बहनों ने एक्सीडेंट की आवाज सुनी तो उन्होंने जान बचाने के लिए दौड़ लगा दी। चकनाचूर स्कॉर्पियो में फंसे 5 बच्चों को 108 एम्बुलेंस बुलाकर खुद अस्पताल पहुँचा दिया, जिनमें 2 की मौत हो गई थी तथा 3 की जान बच गई।

दुर्घटना में स्कोर्पियो बुरी तरह डैमिज हो गई थी। दोनों बहनों ने बहादुरी दिखाते हुए एक्सीडेंट में बुरी तरह जख्मी हुए 5 मासूमों को गोद में उठाकर अस्पताल पहुंचाया और इलाज भी करवाया। इससे उनके भी कपड़े खून से रंग गए थे। सोमवार को राजकीय चिकित्सालय में आयोजित एक कार्यक्रम में दोनों बहनों को मुख्यमंत्री चिरंजीवी जीवन रक्षक योजना के तहत चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। दोनों को योजना के तहत पांच-पांच हजार रुपये भी मिलेंगे। कार्यक्रम में अस्पताल प्रभारी डॉ राजेश लेगा, डॉ मुकेश चौधरी, समाजसेवी बुधराज सोनी, भाजपा मंडल अध्यक्ष बलबीर सिंह गुढ़ा, अमित आसोपा सहित प्रबुद्धजनों ने दोनों बहनों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।

तुरंत मदद मिले तो बचाई जा सकती हैं जान

अस्पताल प्रभारी डॉ राजेश लेगा ने बताया कि सड़क हादसे में घायल के लिए शुरूआती आधा घंटा बहुत अधिक महत्वपूर्ण हाेता है। इस अवधि में मदद मिल जाए ताे 90 फीसदी चांस हाेते हैं कि मरीज काे बचाया जा सकता हैं। चिकित्सा व्यवस्थाएं ऐसी हैं कि घायल काे 6 घंटे में हायर सुपर स्पेशिलिटी सेंटर भी पहुंचाया जा सकता है। इससे अंगभंग हाेने से भी बचाया जा सकता है।

हमने खुद ऐसे सैकड़ाें मामले देखे हैं, जिनमें घायलाें के बचने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन तत्काल उपचार मिलने के कारण बचा लिए गए। इसलिए हादसाें के तुरंत बाद जितनी जल्दी मदद मिले, मरीज के लिए उतना ही फायदेमंद हाेता है।

प्रचार प्रसार की कमी से लोग हैं अनभिज्ञ

2016 में सुप्रीम काेर्ट की डबल बैंच ने निर्णय दिया था कि अस्पताल पहुंचाने वाले से पुलिस पूछताछ नहीं करेगी।

सड़क हादसाें में घायलाें की मदद करने वाले एक व्यक्ति काे पुलिस द्वारा प्रताड़ित करने के एक मामले काे लेकर सेव लाइफ फाउंडेशन ने सुप्रीम काेर्ट की डबल बैंच में 2012 में याचिका दायर की थी। 2016 में 30 मार्च काे इस पर डबल बैंच ने 22 पेज का महत्वपूर्ण निर्णय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में व्याख्या दी कि हादसे के तुरंत बाद का समय ‘गाेल्डन पीरियड’ हाेता है जिसमें सार्थक मदद मिले ताे घायलाें की जान बचाई जा सकती है। इस दाैरान घायल की जान चली जाती है अथवा अंगभंग की स्थिति बनती है ताे अस्पताल प्रबंधन पर आपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया जाएगा। हालांकि प्रशासन की ओर से इस संबंध में प्रचार प्रसार की कमी व अन्य कारणाें से बहुत से लाेग इस बात से अनभिज्ञ हैं।


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न्यूज़ डेस्क

"दिनेश लूनिया, एक अनुभवी पत्रकार और 'Luniya Times Media' के संस्थापक है। लूनिया 2013 से पत्रकारिता के उस रास्ते पर चल रहे हैं जहाँ सत्य, जिम्मेदारी और राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं।

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