25 जून संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने को मिली कानूनी मान्यता, 1975-77 आपातकाल की पृष्ठभूमि

- पाली
[box type=”note” align=”” class=”” width=””]घेवरचन्द आर्य पाली।[/box]
भारत सरकार द्वारा गजट में 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रुप में कानूनी मान्यता मिलने पर लोकतंत्र सेनानी संघ राजस्थान ने खुशी जाहिर करते हुए माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह का आभार जताया।
लोकतंत्र सेनानी संघ राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मेघराज बंब ने बताया कि आपातकाल के 50 वे वर्ष में 25 जून 1975 को जो आपातकाल इंदिरा गांधी ने लगाया था उसको भारत सरकार ने अधिसूचना के द्वारा “संविधान हत्या दिवस” के रूप में घोषित किया है । बंब ने कहां कि आपातकाल के दोरान लोकतंत्र की आत्मा का गला घोटकर लाखों लोगों को बिना कारण जेल में बंद कर दिया गया था, प्रेस की आजादी पर सेंसरशिप लगा दी थी। (Maintenance of Internal Security Act) का भरपूर दुरूपयोग हुआ. 25 जून आपातकाल के दौरान संविधान की हत्या करने वाला दिवस के रूप में मान्यता देकर सरकार ने यह साबित कर दिया है कि आपातकाल असंवैधानिक था। राजस्थान के सभी आपातकालीन आंदोलन कर्ताओं ने खुशी जाहिर करते हुए कहां कि हम राष्ट्रद्रोही नहीं लोकतंत्र सेनानी थे।
1975-77 के दौरान, भारत में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई थी। यह अवधि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अत्यंत विवादास्पद और संविधान हत्या दिवस के रूप में माना जाता रहा है। इस दौरान हुई हिंसा और दमन के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है-
आपातकाल की पृष्ठभूमि
न्यायिक संकट: जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के 1971 के लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। अदालत ने उन्हें चुनावी कदाचार का दोषी पाया और उनके चुनाव को रद्द कर दिया।
राजनीतिक विरोध: विपक्षी पार्टियों और नेताओं ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की। जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
आपातकाल की घोषणा
25 जून 1975 को, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करवाई, जिससे देश भर में मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई।
आपातकाल के दौरान की हिंसा और दमन
राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी: विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं और छात्रों को बिना मुकदमे के गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे। हजारों लोगों को मीसा (Maintenance of Internal Security Act) के तहत जेल में डाला गया।
मीडिया सेंसरशिप: प्रेस की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया गया। समाचार पत्रों को सेंसर किया गया और केवल सरकारी दृष्टिकोण को प्रकाशित करने की अनुमति दी गई। विरोधी विचारों को दबा दिया गया और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया।
जबरन नसबंदी: संजय गांधी के नेतृत्व में एक विवादास्पद परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें लाखों पुरुषों को जबरन नसबंदी कराई गई। इस अभियान में गरीब और कमजोर वर्गों के लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया गया।
आवासीय विध्वंस: संजय गांधी के शहरी विकास योजना के तहत दिल्ली में कई झुग्गी बस्तियों को ध्वस्त कर दिया गया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए।
न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला: न्यायपालिका को दबाने के प्रयास किए गए और जजों पर सरकारी नीतियों का समर्थन करने का दबाव डाला गया। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए कई कदम उठाए गए।

आपातकाल की समाप्ति
जनवरी 1977 में, इंदिरा गांधी ने आपातकाल समाप्त करने की घोषणा की और मार्च 1977 में आम चुनाव कराए गए। चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भारी पराजय का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसमें मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। आपातकाल के दौरान हुई हिंसा और दमन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती थी। यह अवधि भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण सबक के रूप में देखी जाती है, जिससे मौलिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के महत्व को समझा जा सका। इस घटना ने यह भी दिखाया कि सत्ता के दुरुपयोग से कितनी गंभीर हानि हो सकती है और जनतंत्र की जड़ें कितनी गहरी होनी चाहिए।