“अभय दास महाराज के अनशन से जालोर में हलचल, बायोसा माता मंदिर विवाद बना प्रदेश का सबसे बड़ा धार्मिक मुद्दा”

“जालोर में आस्था बनाम प्रशासन: 29 वर्षीय संत अभय दास महाराज का आमरण अनशन, बायोसा माता मंदिर प्रवेश पर बवाल”
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“बायोसा माता मंदिर विवाद: संत अभय दास महाराज का आमरण अनशन, प्रशासनिक रोक के खिलाफ सैकड़ों समर्थकों के साथ आंदोलन”
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“जालोर में धार्मिक संघर्ष गहराया: संत अभय दास को मंदिर जाने से रोका, अनशन पर बैठे – प्रशासन घेरे में”
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“बायोसा माता मंदिर को लेकर राजस्थान में धार्मिक उबाल, संत अभय दास ने CM को दी खुली चुनौती”
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“जालोर किले की छत पर संत का सत्याग्रह: मंदिर में प्रवेश न मिलने पर अभय दास महाराज का ऐलान – ‘कोई रोक सके तो रोक ले'”
राजस्थान के जालोर जिले में इन दिनों एक गहन धार्मिक और प्रशासनिक टकराव सामने आया है, जिसकी अगुवाई कर रहे हैं केवल 29 साल के युवा संत अभय दास महाराज। यह विवाद तब शुरू हुआ जब संत अभय दास महाराज ने जालोर के समीप एक कथावास कार्यक्रम संपन्न करने के बाद अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ बायोसा माता मंदिर के दर्शन के लिए प्रस्थान किया। यह मंदिर जालोर के ऐतिहासिक किले की घाटी में स्थित है और जनभावनाओं से जुड़ा एक अत्यंत संवेदनशील धार्मिक स्थल माना जाता है।
जब संत और उनके समर्थक मंदिर के नजदीक पहुंचे, तो प्रशासन ने उन्हें पुलिस के माध्यम से रोक दिया। पुलिस अधीक्षक (SP) और जिला कलेक्टर के निर्देश पर मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। प्रशासन का कहना था कि यह यात्रा धार्मिक रूप से उकसाने वाली हो सकती है और इससे साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न हो सकता है। वहीं, संत अभय दास महाराज ने मंच से प्रशासन को खुली चुनौती दी और कहा – “कोई रोक सके तो रोक ले।” इसी घोषणा के साथ उन्होंने आमरण अनशन शुरू करने का ऐलान कर दिया।
स्थिति और संवेदनशील तब हो गई जब प्रशासन ने इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया, लेकिन अभय दास महाराज ने अपने समर्थकों के साथ पुलिस को चकमा देते हुए एक स्थानीय मकान की छत पर पहुंचकर वहीं से आमरण अनशन शुरू कर दिया। बारिश के बावजूद सैकड़ों की संख्या में महिलाएं, युवा, संत और श्रद्धालु उस छत पर जमा हो गए।
पुलिस ने चारों ओर से मकान की घेराबंदी कर दी, परंतु संत के प्रति जनता की श्रद्धा और समर्थन को नहीं रोका जा सका। महाराज ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए कि पुलिसकर्मियों ने उनके साथ धक्का-मुक्की की, उनके वस्त्र फाड़े गए और उनके कथावास में शामिल हुईं करीब 700 से 800 महिलाओं पर जबरदस्ती की गई।
इस पूरे घटनाक्रम ने सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलाव ले लिया। एक वीडियो क्लिप वायरल हुई जिसमें महाराज कहते नजर आ रहे हैं कि “पुलिस की वर्दी में बैठे हिंदू ही हमें मंदिर में प्रवेश से रोक रहे हैं।” इस बयान से धार्मिक भावनाएं और भड़क उठीं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लोगों की प्रतिक्रियाएं तेज हो गईं। महाराज के समर्थन में कई ट्रेंड चलने लगे। कुछ असामाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियाँ भी कीं, जिनमें से दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। साथ ही, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने SP के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
संत अभय दास महाराज ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से कई अहम मांगें रखी हैं। उन्होंने सबसे पहले SP, कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर को तत्काल निलंबित करने की मांग की है। इसके अलावा उन्होंने कहा है कि बायोसा माता मंदिर की पहाड़ी पर स्थित सभी मजारों और कब्रों की जांच होनी चाहिए और यदि वे अवैध निर्माण के अंतर्गत आते हैं, तो उन पर बुलडोजर चलाया जाए।
महाराज ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक मुख्यमंत्री स्वयं आकर मंदिर में दर्शन नहीं करेंगे, वे भी दर्शन नहीं करेंगे। उन्होंने उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर भी आक्रोश जताया जिन्होंने उन्हें कथावास के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन जब मामला गरमा गया तो वे लापता हो गए। अब महाराज ऐसे लोगों को राजनीतिक रूप से ब्लैकलिस्ट करने की मांग कर रहे हैं।
प्रशासन की ओर से लगातार यह कोशिश की जा रही है कि स्थिति को नियंत्रण में रखा जा सके, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बायोसा माता मंदिर क्षेत्र अब छावनी में तब्दील हो चुका है। हर कोने पर पुलिस बल तैनात है, लेकिन आमजन, संत वर्ग और महिलाओं की आस्था प्रशासनिक ताकतों से कहीं अधिक मजबूत दिखाई दे रही है। जालोर की धरती पर इस समय आस्था बनाम प्रशासन का सीधा संघर्ष चल रहा है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अभय दास महाराज कोई सामान्य संत नहीं हैं। वे पूर्व में कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ मंच साझा कर चुके हैं। तथा देश विदेश में कथाए और प्रवचन करते है। वे मंदिर संरक्षण, हिंदू संस्कृति के पुनर्जागरण और सामाजिक जागरूकता को लेकर विशेष रूप से सक्रिय हैं। उन्होंने लगातार यह कहा है कि वे सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक लड़ते रहेंगे और यह आंदोलन भी उसी दिशा में एक कदम है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया है कि अब यह मामला केवल एक मंदिर प्रवेश का नहीं रहा। यह एक धार्मिक चेतना, प्रशासनिक जवाबदेही और राजनीतिक संतुलन की जटिल परीक्षा बन चुका है। जनता की निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या मुख्यमंत्री इस पूरे प्रकरण में सीधे हस्तक्षेप करेंगे या फिर प्रशासनिक स्तर पर कोई निर्णायक कार्रवाई होगी। अगर इस मुद्दे पर जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह विवाद न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में एक बड़ा धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
यह भी संभावना है कि अगर संत को समर्थन देने वाले अन्य धार्मिक संगठन और संत आगे आते हैं, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है। सोशल मीडिया के माध्यम से यह विषय देशभर में फैल रहा है और हर दिन इस पर जनभावनाएं उग्र होती जा रही हैं। ऐसे में सरकार और प्रशासन के लिए यह मामला अब केवल कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि आस्था, सम्मान और सांस्कृतिक अधिकारों से भी जुड़ गया है। समय रहते संतोषजनक समाधान नहीं होने की स्थिति में यह घटना भविष्य में राजस्थान की राजनीति और प्रशासनिक छवि दोनों पर गहरा प्रभाव छोड़ सकती है।