गोडवाड़ की आवाज SPECIAL REPORT BY YUVRAJ GOUR
ज्ञानवापी सर्वे मामले में प्रो. राणा पीबी सिंह का कहना है कि न केवल पश्चिम दीवार, बल्कि ज्ञानवापी का तहखाना भी हिंदू मंदिरों के साक्ष्यों से भरा हुआ है। प्रो. ओंकारनाथ सिंह ने कहा कि ASI विशेषज्ञों की संस्था है जो जिम्मेदारी से काम करता है।
श्रीराम जन्मभूमि की तरह से बड़ी सफाई के साथ करेगा। वे अनुमति प्राप्त मशीनों का ही प्रयोग करेंगे। किसी तरह की टूट-फूट नहीं होगी। एब्सॉल्यूट और रिलेटिव डेटिंग करेंगे। एब्सॉल्यूट डेटिंग में साक्ष्यों की फिजिकल प्रॉपर्टीज के बारे में जानकारियां लेते हैं। प्रो. ओंकारनाथ सिंह ने कहा कि ASI सर्वे से दीवारों के भित्ति चित्रों, मूर्तियों, कमल और बहुत सारे हिंदू आइकंस की स्टडी करके उसका काल निर्धारित किया जा सकता है। दीवारो के भित्ति चित्रों, मूर्तियों, कमल और बहुत सारे हिंदू आइकंस की स्टडी करके उसका काल निर्धारित कर सकते हैं। किस काल में कब-कब उन आइकंस का इस्तेमाल था। वह सब कुछ बता देंगे।
उस मंदिर का कालखंड, पूजा-आराधना का समय सभी कुछ पर उनकी व्याख्या आ सकती है। टीम परत दर परत सच तक पहुंचेगी। प्रो. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (GPR) सर्वे में परिसर के अंदर जमीन के 15-20 मीटर नीचे तक क्या है, उसका पूरा डाटा मिल जाएगा।इसमें कोई खुदाई या ड्रिलिंग नहीं होती। बल्कि, तरंगें धरती में सीधी नीचे जाती हैं और जमीन के नीचे उनके वैरिएशन को नोट किया जाता है।यह वेब अंदर विजुअलाइज करके यह बता देगी कि कौन सी वस्तु या स्ट्रक्चर है। इसका साइज, शेप और प्रकृति क्या है।GPR से मिले रिजल्ट को कंप्यूटर में ग्राफिक्स के तौर पर भी दिखाया जा सकता है।सर्वे पूरा होने के बाद जियो क्वार्डिनेट मैपिंग कराई जाती है। इसमें मंदिर की रूपरेखा, गर्भगृह का आकार और प्रदक्षिणा पथ आदि के बारे में जानकारियां मिलेंगी। 390 साल पहले ज्ञानवापी में शिवलिंग मौजूद था। ऐसा दावा एक ब्रिटिश यात्री पीटर मुंडी ने किया था।
वह एक यूरोपीय दार्शनिक तथा विदेशी यात्री था। मुगल बादशाह शाहजहां के समय में वह भारत आया था। उसने 1630-32 ई. में पड़े भीषण अकाल का भी उल्लेख किया है।उसने लिखा है, ‘बिना नक्काशी किए हुए पत्थर को महिलाएं पूज रही हैं। दूध, गंगाजल, फूल और चावल से अभिषेक कर रहीं हैं। घी के दीपक भी जलाए जा रहे हैं। यहां पर लोग इसे महादेव का शिवलिंग कहते हैं, जो कि चारों ओर एक दीवार से घिरा हुआ है। वहीं, पानी गिरने के लिए एक रास्ता भी बनाया गया हैं। यह कहानी वाराणसी के विश्वेश्वर मंदिर टूटने से 37 साल पहले की है। 1632 में शाहजहां का शासन था। उसके बेटे औरंगजेब के ज्ञानवापी मस्जिद बनवाने से पहले पीटर मुंडी बनारस आया था और उसने अपनी किताब में उस समय के समाज और वातावरण की बहुत सारी बातें भी लिखी हैं। उसने अपने लिखे के प्रमाण के तौर पर स्केच किया हुआ एक चित्र भी दिया है।
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