दीपावली पर्व की महिमा
- पोसालीया (सुमेरपुर)
जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वरजी म.सा . ने श्री पोसालिया जैन संघ आयोजित सुखधाम तीर्थ में महामंगलकारी उपधान तप में प्रवचन देते हुए कहा कि :-लौकिक पर्वों का एक मात्र उद्देश्य अच्छा खाना, अच्छे कपड़े पहिनना, घूमना-फिरना, मिलना-जुलना, आमोद-प्रमोद करना, बस, यही होता है। लोकोत्तर पर्व अर्थात् जो आत्मा को पावन करे, पवित्र करे । सोई हुई चेतना को जाग्रत करे ।
जहाँ आत्मा के गुण-दोषों का विचार हो, गुण प्राप्ति और दोष- ह्रास का जहाँ ध्येय हो, दोषों के नाश के लिए जहाँ पूरा-पूरा प्रयत्न हो, वे सब लोकोत्तर पर्व कहलाते हैं।
जैन धर्म के सभी पर्व लोकोत्तर पर्व हैं, क्योंकि वे सभी पर्व आत्मा को जागृत करते हैं, उन पर्वों में मौज-मस्ती की नहीं, बल्कि त्याग, तप और संयम की साधना होती है।
अपने हर पर्व का तप-जप के साथ संबंध जुड़ा हुआ है। ज्ञान पंचमी आती है, लोग उपवास करते हैं। नवपद ओली आती है, आराधक लोग आयंबिल करते हैं। पौष दशमी आती है, आराधक लोग अट्ठम करते हैं। दीपावली आती है और लोग छट्ठ करते हैं। भगवान महावीर प्रभु की जीवनयात्रा के साथ छट्ठ तप का घनिष्ट संबंध है। प्रभु ने दीक्षा ली तब प्रभु के छट्ठतप था। प्रभु को केवलज्ञान प्राप्त हुआ, तब भी प्रभु के छट्ठ तप था । छद्मस्थ अवस्था में प्रभु ने 229 छट्ठ किये थे ।प्रभु मोक्ष में गए, तब भी प्रभु ने छट्ठ किया था। दीपावली एक ऐसा पर्व है, जिसे हम भी मनाते हैं और हिन्दू लोग भी मनाते हैं। अतः यह लोकोत्तर पर्व है और लौकिक पर्व भी है। जैन धर्म में दीपावली पर्व का संबन्ध प्रभु महावीर स्वामी के निर्वाण के साथ है। इस दिन हमें प्रभु के निर्वाण कल्याणक की आराधना करने की है।
वीर प्रभु ने अपने निर्वाण के पूर्व भरत क्षेत्र के जीवों के हित के लिए निरन्तर 16 प्रहर तक देशना दी थी। पुण्य फल को बताने वाले 55 अध्ययन, पाप फल को बताने वाले 55 अध्ययन व अपृष्ट व्याकरण के 36 अध्ययन कहकर प्रभु ने मोक्ष प्राप्त किया था ।