परमात्मा की सृष्टि में परमात्मा ने मनुष्य को ज्ञानेन्द्रियों प्रदान की है। मनुष्य इन ज्ञानेंद्रियों पर ही आश्रित है। अपनी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ही वह कई प्रकार के अनुभव संग्रहित करता है। इसी अनुभव के कारण वह संसार को जानता है। दृष्टि, स्वाद, श्रवण, गन्ध तथा स्पर्श आदि ज्ञानेन्द्रियों में श्रवणेन्द्रिय की भुमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
बिना ध्वनि के कल्पना कीजिये, न चिड़ियों की चहचहाहट, न ही सुगम संगीत की गूँज तथा लहरों की सौम्य गर्जना, समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए श्रवण शून्यता ही एक सच्चाई है। श्रवण का सबसे महत्वपूर्ण कार्य वाणी को ग्रहण करना, समझना, स्थिति का निर्धारण करना व सम्प्रेषण कौशल का विकास करना होता है। श्रवण दोष से प्रभावित व्यक्ति को सुनने व समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
यह किसी भी सीमा तक हो सकता है। सुनने में बाधा की सीमा अधिक हो जाने से वाणी व भाषा की प्राकृतिक प्रगति में रूकावट पड़ती है। इसके साथ मौखिक बातचीत में भी बाधा उत्पन्न होती है। श्रवण दोष शब्द का प्रयोग श्रवण क्षति के सन्दर्भ में किया जाता है। इसका मापन श्रवण मापक यंत्र से होता है। ध्वनि की इकाई डेसीबल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (1980) निःशक्तता एवं विकलांगता आदि शब्दों को वर्गीकृत कर परिभाषित किया है। भारत सरकार ने निशक्त और विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द दिया हैं ।
बधिर कौन है?
विशेषज्ञों के अनुसार श्रवण बाधिर श्रेणी में वे लोग आते हैं जिसकी श्रवण शक्ति सुनने में अक्षम हों या ऊँचा सुनते हों। इस विकलांगता को दो अलग भागों में बाँटा जाता है – बहरापन और ऊँचा सुनना। बहरापन या बधिरता श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनकी सुनने की क्षमता दोनों कानों में 70 Db डेसिबल या उससे अधिक तक हो जाती है। अथवा जन्मजात श्रवण दोष जनित है, जिसके कारण उसमें गूंगापन भी है।
ऊंचा सुनने की श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनकी दोनों कानों से सुनने की क्षमता 50 से 60 Db डेसिबल तक कम हो जाती है। इन दोनो प्रकार के बधिरों की अपनी अलग अलग समस्याएं भी हैं। हमारे देश में वे सभी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है जो बधिर लोगो को मिलनी चाहिए। ताकि वे इनका लाभ उठा कर समाज में सम्मान प्राप्त कर सकें।
बहरेपन की पहचान
अगर कोई बच्चा गूंगा है तो उसका मूल कारण उसका बहरापन ही है। मेरे गांव केरला में एक बच्चा है जो बोलता नहीं है उसके घर वाले कहते हैं की यह सुनता तो है लेकिन बोलता नहीं । जबकि हकिकत में बहरापन के कारण ही बच्चा बोलना सीख नहीं पाता है। भारत में हर एक हजार बच्चों में से दो बच्चे बहरे होते हैं। सुनना एक श्रवण प्रक्रिया है । जिसका उद्देश्य वातावरण में मौजूद शब्दों को ग्रहण करना होता है। श्रवण दोष से तात्पर्य सुनने की अक्षमता है। अर्थात दुसरे की बात और वातावरण में मौजूद ध्वनियों को सुनने समझने में कठिनाई उत्पन्न होना है। श्रवण अक्षमता व्यक्ति में सुनने की बाधा उत्पन्न करती है। जो व्यक्ति अपनी श्रवण शक्ति खो देता है उसे सांकेतिक भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है।
कानों का आराम करना वर्जित है
मनुष्य जब नींद लेता है तो उसकी आंखें कुछ समय के लिए बंद रहती है। नींद से जागने पर तरोताजा होकर फिर खुलती हैं । विशेषज्ञों के अनुसार कानों को आंखों की तरह आराम करना वर्जित है। उनको तो नींद में भी सक्रिय रहना पड़ता है। लेकिन जिसमें जन्मजात या बिमारी से श्रवणदोष है उस पर क्या व्यतीत होती हैं यह मेरे जैसा श्रवण बधिर व्यक्ति ही बखुबी जानता है। बिना आवाज की दुनिया की आप केवल कल्पना ही कर सकते हैं उनकी भावना और दर्द हर व्यक्ति नहीं समझता।
बधिर व्यक्ति की दुनिया
एक बधिर के लिए सारा संसार ही बधिर व गूंगे के समान होता है। दुनिया की छोड़ो अपने आस पास क्या हो रहा है इसकी भी उसे जानकारी नहीं होती। घर वाले उसकी उपेक्षा करते हैं और इसकी बधिरता का नाजायज फायदा उठाकर उसके साथ छल-कपट भी कर देते हैं। इस लेखक के साथ भी घर वालों और ग्राम पंचायत ने मिलकर पैतृक मकान का पट्टा दुसरे के नाम जारी कर दिया। यह एक गंभीर समस्या है सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए अगर कोई बधिर दिव्यांग के साथ छल-कपट करें तो प्रशासन को उसके विरुद्ध दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम के तहत कार्यवाही करनी चाहिए।
श्रवण दोष जनित बधिर व्यक्ति समाज और परिवार से पूरी तरह कटकर दुसरे पर निर्भर हो जाता है। उसे हर बात सुनने और समझने के लिए दुसरे की सहायता लेनी पड़ती है उनकी समस्यायें कोई सुनता ही नहीं। इसलिए वह अपने जैसे बधिर लोगों से दोस्ती करना और उसके साथ रहना ही उचित समझता है। जो उसकी भावना को समझकर उसके साथ उसी की भाषा में वार्तालाप कर सके।
बधिर को शिक्षा पाने का अधिकार
बधिर लोगो की पहली बुनियादी समस्या तो उन को शिक्षित बनाने को लेकर ही है । शिक्षा पाने का उन्हें उतना ही अधिकार है जितना स्वस्थ नागरिक को । सन् 1975 में जब मैं आठवीं में पढ़ता था तब हमारे देश में बधिरों के लिए स्कूलें भी केवल जोधपुर और अजमेर जैसे बड़े शहरों में थी, वह भी नगण्य। इसलिए उस जमाने में बधिर बच्चे को सामान्य बच्चों के साथ पढ़ना पड़ता था। जो एक तरह से तिरस्कार का कारण बनती थी। अब इसमें कुछ सुधार हुआ है लेकिन शिक्षा देना ही पर्याप्त नहीं है। शिक्षा उपरान्त बधिर लोगों का शत् प्रतिशत पुनर्वास होना चाहिए। पुनर्वास के अभाव में बधिर व्यक्ति को रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई आती है। अगर कोई रोजगार दे देता है तो उसकी बधिरता का फायदा उठाकर उसका शोषण करता है। जो सरकार और सभ्य समाज के लिए उचित और मर्यादित नहीं है। बधिरों को दान या सहायता की आवश्यकता नहीं है। उनको उनकी योग्यता और कार्यक्षमता अनुसार रोजगार एवं सम्मान की जरूरत है।
बधिर व्यक्ति मे प्रतिभा
बधिर व्यक्ति मे भी एक खास प्रतिभा छिपी होती है। वह चित्रकार, कलाकार, लेखक, पत्रकार, लेखाकार कुछ भी हो सकता है। सरकार और समाज को उसकी प्रतिभा का सम्मान करना चाहिए, तिरस्कार नहीं । उसकी कार्यक्षमता और योग्यता अनुसार उसे रोजगार दिया जाना चाहिए। ऊपर लिखी प्रतिमा और योग्यता तो हर बधिर में होती है मगर उचित सलाह व सरकारी सहयोग के अभाव में उसका समुचित विकास नहीं होता। वह बीच में ही दम तोड़ जाती है।
नैत्रहीन विद्वान हो सकता है बधिर नहीं
प्रायः देखा जाता है कि श्रवण परम्परा से सुनकर नैत्रहीन (दृष्टि बाधित) दिव्यांग जनों में कई बड़े-बड़े कवि, भजनोपदेशक, प्रचारक और महामंडलेश्वर हुए है। जिसमें महात्मा सूरदास, महर्षि दयानन्द के गुरू विरजानंद जी सरस्वती और वर्तमान में महामण्डलेश्वर रामभद्राचार्य जी के उदाहरण हमारे सामने है। लेकिन श्रवण बधिर दिव्यांग जनों में आज दिन तक दृष्टिहीन जैसा विद्वान नहीं देखा गया। इसका मूल कारण श्रवण बधिरों द्वारा भाषा एवं वातावरण में मौजूद ध्वनियों को ग्रहण कर, समझने में असमर्थ रहना ही हैं।
भारत में दिव्यांगो की संख्या
वर्ष 2011 की जनगणना से पता चलता है कि भारत में दिव्यांगो की कुल संख्या करीब 2.68 करोड़ या आबादी का 2.21% है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार दुनिया की कुल आबादी का करीब 15 प्रतिशत किसी-न-किसी प्रकार की विकलांगता से जूझ रहा है। वहीं भारत के बधिर समुदाय का सटीक आंकड़ा अज्ञात है। भारत दक्षिण एशिया के आठ देशों में सबसे बड़ा है। इसका मतलब यह भी है कि यहाँ सबसे बड़ी बधिर आबादी है, लेकिन आँकड़े स्पष्ट नहीं हैं। नेशनल एसोसिएशन ऑफ द डेफ (वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ से संबद्ध) के अनुसार, श्रवण हानि से प्रभावित भारतीयों की संख्या 18 मिलियन है। ये व्यापक रूप से भिन्न आँकड़े भारत में बहरेपन और सुनने की क्षमता में कमी की बुनियादी परिभाषाओं का परिणाम हैं।
आश्चर्यजनक वही व्यक्ति जिसे WHO द्वारा “गंभीर श्रवण हानि से पीड़ित” के रूप में वर्गीकृत किया गया है, उसे हाल ही में भारत में “श्रवण दिव्यांग” भी नहीं माना गया था। भारत में आज की स्थिति में, केवल 40 प्रतिशत विकलांगता की न्यूनतम डिग्री वाले भारतीय ही योग्य हैं। श्रवण बधिरों में केवल 60 dB की सीमा से ऊपर की हानि वाले लोग ही योग्य समझे जाते हैं।
भारत में बधिर और कम सुनने वाले लोगों की संख्या करीब 6.3 करोड़ है। हालांकि, इस संख्या को लेकर अलग-अलग आकलन हैं- 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में बधिर और कम सुनने वाले लोगों की संख्या 50 लाख थी। राष्ट्रीय बधिर संघ के मुताबिक, भारत में बधिर और कम सुनने वाले लोगों की संख्या 1.8 करोड़ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में बधिर और कम सुनने वाले लोगों की संख्या करीब 6.3 करोड़ है।
विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम 2016″
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र जी मोदी द्वारा दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम 2016 को दोनों सदनों राज्य सभा और लोकसभा ने पारित किया। इस विधेयक ने विकलांग अधिकार अधिनियम,1995 का स्थान ले लिया है। इस अधिनियम में पहले दिव्यांगजनों की निर्धारित श्रेणी 7 ही थी, जिसको बढ़ाकर 21 की गई है ।
जो इस प्रकार हैं-
1. दृष्टिहीनता,
2. कमजोर दृटि,
3. कुष्ठ रोग से मुक्त हो चुके व्यक्ति,
4. बधिर (बहरे और मुश्किल से सुन सकने वाले),
5. चलने में अक्षम,
6. बौनापन,
7. बौद्धिक विकलांगता,
8. मानसिक बीमारी,
9. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार,
10. सेरेब्रल पाल्सी,
11. मांसपेशी दुर्विकास ,
12. स्थानीय स्नायविक परिस्थितियां,
13. विशिष्ट प्रज्ञता अक्षमताएं,
14. मल्टीपल स्केलेरोसिस ,
15. भाषण और भाषा संबंधी विकलांगता,
16. थैलेसीमिया,
17. होमोफिलिया,
18. सिकल सेल बीमारी,
19. बहु विकलांगता
20. तेजाब हमले से पीड़ित
21. पार्किंसस बीमारी आदि
साथ ही इस विधेयक में सरकार द्वारा दिव्यांग जनों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव किए जाने पर दो वर्ष की जेल और अधिकतम 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान विधेयक में किया गया है। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच सदन में दुर्लभ मतैक्य देखने के बाद “विकलांग अधिकार विधेयक”को ध्वनिमत से पारित किया गया।
भारतीय संविधान में बहरापन
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 1995, (पीडब्ल्यूडी) की धारा 2 (i) (iv) में कहा गया है कि ‘श्रवण दोष’ एक विकलांगता है और “दिव्यांग व्यक्ति” का अर्थ ऐसा व्यक्ति है जो चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित किसी भी विकलांगता के 40% से कम नहीं है।
यू डी आई डी कार्ड
भारत सरकार ने देश के सभी दिव्यांग जनों की गणना और डाटा संग्रह के लिए यूनिक डिसेबिलिटी आईडी कार्ड योजना जारी की है। यह दिव्यांगों के लिए जारी किया जाने वाला एक पहचान पत्र है। जो भारत सरकार के समाज कल्याण विभाग की ओर से जारी किया जाता है। इस कार्ड के ज़रिए, दिव्यांग देश के किसी भी हिस्से में सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं। और यह कार्ड पूरे भारत में मान्य है। क्योंकि कार्ड में दिव्यांगता के प्रकार और उसकी गंभीरता को प्रमाणित जानकारी होती है। यू डी आई डी कार्ड धारक, सरकारी योजनाओं जैसे सब्सिडी, और विशेषाधिकारों का लाभ उठा सकते हैं।
लेकिन कार्ड बनाने में हो रही गलतीयो के कारण यह कार्ड केवल हाथी का दांत बना हुआ है। जब दिव्यांग जनों की श्रेणी 7 थी तब दिव्यांग जनों के लिए आरक्षण 3 प्रतिशत था। अब सरकार ने श्रेणी दो गुणी बढ़ाकर 21 कर दी है लेकिन आरक्षण केवल एक प्रतिशत बढ़ाकर 4 प्रतिशत ही किया गया है यानि ऊंट के मुंह में जीरा। यहां पर भी केवल पैसे वालों की पहुंच होती है । इसलिए बधिरों को कोई फायदा नहीं मिलता अगर सरकार श्रेणी के हिसाब से दो गुणा आरक्षण बढ़ाकर 9 प्रतिशत करें तो दिव्यांग जनों को राहत मिल सकती है।
हर जगह बधिरों के साथ भेदभाव
विश्व सहित भारत में बधिर दिव्यांग जनों की समस्याएं अलग अलग होने के बावजूद उसकी मूल समस्याएं एक जैसी ही है। सभी देशों और भारत में भी बधिरों के साथ भेदभाव किया जाता है और उनको समाज से अलग करके देखा जाता है। सरकारें भी इसमें पीछे नहीं रहती, वे भी पक्षपात करती है। कहने को तो सरकार उनको भी विधिवत दिव्यांग समझती है और उनको भी अन्य दिव्यांग जनों की तरह लाभ प्राप्त करने का अधिकारी मानती है लेकिन हकीकत में उनके साथ भेदभाव होता है।
रेल यात्रा छूट मे भेदभाव
भारत सरकार का रेलवे मंत्रालय,रेल यात्रा में नैत्रहीन और अस्थि विकृत जन्य दिव्यांग को एक एस्कार्ट के साथ 75 प्रतिशत छुट देती है। जबकि मूक-बधिर को एक एस्कार्ट के साथ केवल 50 प्रतिशत ही छूट मिलती है और बधिर व्यक्ति को कोई छुट नहीं दी जाती। जबकि संवैधानिक दृष्टि से बधिर व्यक्ति भी दिव्यांग होता है। यह बात रेलवे मंत्रालय और उसकी सलाहकार समिति जितना जल्दी समझें उतना ही बेहतर है। मेरा मानना है कि रेलवे को बधिर और मूक-बधिर दिव्यांग जनों को सभी श्रेणी में 75 प्रतिशत छूट दी जानी चाहिए।
राजस्थान पंथ परिवहन बसों में भेदभाव
इसी प्रकार राजस्थान सरकार द्वारा संचालित राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की रोडवेज बसों में सरकार नैत्रहीन और अस्थि विकृत जन्य दिव्यांग को एक एस्कार्ट के साथ सुविधा देती है । जबकि बधिर व्यक्ति के साथ एस्कार्ट सुविधा ही नहीं है। यहां पर भी वही भेदभाव किया जाता है जबकि दोनों प्रकार के व्यक्ति को भारत सरकार यूं आई डी कार्ड जारी कर समान सुविधाएं प्राप्त करने का हकदार मानती है।
वाहन उपलब्ध करवाने में भेदभाव
अन्य दिव्यांग जनों के लिए तो सरकार फिर भी कुछ सुविधाए मुहैय्या कराती है। जैसे बैटरी चलित व्हील चेयर, ट्राई साइकिल या मोटराइज्ड स्कूटी आदि। लेकिन बधिरों के लिए सरकार कोई वाहन उपलब्ध नहीं करवाती और न ही उसको वाहन खरीदने के लिए अनुदान देती है । इसलिए बधिर लोगो को हर जगह निराशा ही मिलती है। मेरा प्रश्न यह है कि क्या बधिर या मूक-बधिर दिव्यांग नही होता है? सरकार उसे दिव्यांग नहीं मानती ?? सरकार के अनुसार अगर बधिर व्यक्ति भी दिव्यांग है तो उसको अन्य दिव्यांग जनों की तरह सम्मान रूप से सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। मेरी आयु 63 वर्ष है लेकिन सरकार की ओर से 40 वर्ष पहले केवल एक श्रवण यंत्र दिया गया था। अब केवल रेल यात्रा छूट और बस यात्रा का पास बना हुआ हैं लेकिन उसका उपयोग बहुत कम लिया जाता हैं। इसके अलावा कोई सहायता नहीं मिली हैं।
केन्द्र और राज्य सरकार से निवेदन
भारत सरकार और राजस्थान सरकार को मानवीय आधार पर बधिरों की समस्याओं पर गहन विचार कर समाधान का प्रयास करना चाहिए। केवल युनिट डिसेबल कार्ड जारी करना ही पर्याप्त नहीं है । हर कार्ड धारक को दिव्यांग जनों के हित में जारी होने वाले बजट का हिस्सा मिलना ही चाहिए। जैसे प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री अक्षय उर्जा योजना, प्रधानमंत्री पेंशन योजना, प्रधानमंत्री अन्न योजना आदि। अन्यथा कार्ड का कोई औचित्य नहीं रहता।
हमने दिव्यांग सेवा समिति, पाली के बेनर तले विशेष योग्यजन आयुक्त और पूर्व मुख्यमंत्री सहित सम्बंधित मंत्रीयो को दिव्यांग जनों की पेंशन बढाने और ऊपर वर्णित मूक-बधिरो के साथ भेदभाव के बारे में ज्ञापन दिए गए थे । लेकिन सरकार की और से आज तक एक भी ज्ञापन का जबाब नहीं आया। इसी प्रकार सरकारी कार्यालयों में बधिरों के काम नहीं होते सम्बंधित अधिकारी काम करना तो दूर उचित जबाब तक नहीं देते।
दिव्यांग सेवा समिति पाली सरकार से मांग करती है कि दिव्यांग जनो की समस्याओं का समय पर निस्तारण करके राहत पहुंचाई जावे और जो अधिकारी लापरवाही करता है उसके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई करें जिससे दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम की पालना सुनिश्चित हो।