भारत ने विश्व को श्रेष्ठ संस्कृति व ज्ञान की अनुपम भेंट दी: महेन्द्र सिंह राजपुरोहित

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति भौगोलिक सीमा तक ही नहीं रही, इसका प्रभाव विश्वभर की संस्कृतियों पर पड़ा है ।
हमारे सनातन धर्म ग्रंथ वेद, उपनिषद, मनुस्मृति, रामायण, महाभारत, गीता विश्व के सर्वश्रेष्ठ साहित्य है। जिसमें योग, यज्ञ आयुर्वेद, कला, साहित्य, शिल्प, ज्ञान विज्ञान कला कौशल ज्योतिष सहित जीवन जीने की आदर्श पद्धति विधमान है। जिसको पढ़कर असंख्य देशों, सभ्यताओं और जनजातियों पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
यह विचार विश्व हिन्दू परिषद् जोधपुर प्रान्त स्तरीय शिक्षा वर्ग को सम्बोधित करते हुए सह मंत्री महेन्द्र सिंह राजपुरोहित ने सोनाणा खेतलाजी धाम में आयोजित “भारतीय संस्कृति का विश्व में युगों से फैलाव व संचार” विषय पर उद्बोधन देते हुए व्यक्त किये। राजपुरोहित ने कहा कि पूर्व एशियाई देशों, मध्य एशिया, यूरोप तक भारतीय ज्ञान, परंपरा और जीवन-मूल्य पहुंचे, जिसने उनके धर्म, जीवनदृष्टि और शासन प्रणाली तक प्रभावित किया। जो यह दर्शाता है कि भारतीय सभ्यता ने शांति, एकात्मता, सहिष्णुता, परोपकार, ज्ञान व साधना की अनुपम भेंट व प्रेरणा विश्व को दी है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का प्रभाव अनेक देशों की मूल परंपरा, भाषा, भूषा तक आया, जो उनके जीवन जीने, त्योहार मनाने, वेशभूषा अपनाने तक परिलक्षित होता है। इसका प्रमाण हमें अनेक स्थलों पर मिलने वाले शिलालेख, ग्रन्थ, प्रतीक चिह्न व परंपराओं से भी मिलता है। किसी समय हमारी सांस्कृतिक सीमाएं विशाल थीं, वर्तमान के अनेक देश जम्बूद्वीप भारतवर्ष के अभिन्न भौगोलिक भाग थे। आज वे राजनीतिक रूप से भिन्न इकाई जरूर हैं, परन्तु सांस्कृतिक रूप से वे हमारे ही अटूट अंग रहे हैं। उन्होंने आह्वान किया कि हम अपनी श्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपरा का गौरवबोध अनुभव कर सभी को इसकी जानकारी दे जिससे नई पीढ़ी को इसका गर्व हो सके।
विहिप प्रात प्रचार-प्रसार टोली सदस्य मनीष सैन ने बताया कि सत्र के आरम्भ मे दीप प्रज्वलित किया गया गया , वर्ग बौद्धिक प्रमुख नरेन्द्र भोजक ने वर्ग प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।