स्कूली शिक्षा के साथ लोक कलाओं को जोड़ने की दृष्टि से कार्यशाला आयोजित
स्कूली शिक्षा के साथ स्थानीय लोक कलाओं को जोड़ने की दृष्टि से जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान शाहपुरा में डब्ल्यू ई कार्यानुभव प्रभाग द्वारा लोक कला आधारित शिक्षकों का प्रशिक्षण आयोजित किया। इसमें जिले के चालीस से अधिक शिक्षकों ने भागीदारी की। प्रशिक्षण में सैद्धांतिक और प्रायोगिक अभ्यास के साथ शिक्षा में सहयोग की चर्चा की गई।

शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी
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पारीक ने कहा कि कलाओं से जीवन में उत्साह का संचार होता है और यही जीवन का असली आनंद है। उन्होंने अपनी कला यात्रा की शुरुआत स्कूली शिक्षा के दौरान होने तथा निरंतर कला यात्रा कर समाज में स्थान बनाने को स्पष्ट किया।
प्रशिक्षण में विशेषज्ञ कलाकारों द्वारा स्थान विशेष की लोक कलाओं के बारे में सैद्धांतिक तथा प्रायोगिक जानकारी दी गई। इसमें प्रमुख रूप से फड़ शैली की कला तथा वाचन, राजस्थान के विभिन्न चित्र स्कूलों की कला शैलियों, लोकनाट्य गवरी, ख्याल, चित्रशैली का काम, लोक वाद्ययंत्र तथा लोक गायन का प्रशिक्षण श्रव्य दृश्य माध्यम द्वारा दिया गया। प्रशिक्षण की यह विशेषता रही कि जिले के दूर दराज क्षेत्रों से आए शिक्षकों ने रुचि पूर्वक सभी प्रकार की लोक कला के बारे में ना केवल जाना अपितु क्रियात्मक रूप से उन कलाओं पर जीवंत प्रस्तुतियां भी दी। इस दौरान कला शिक्षा प्रभारी द्वारा स्कूली शिक्षा के साथ जोड़ने की प्रक्रिया में कला को शिक्षा के साथ जोड़ने के प्रयासों में शिक्षकों की भूमिका को रेखांकित किया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ व्याख्याता कैलाश जांगीड द्वारा ने किया। इस अवसर पर उप प्रधानाचार्य भगवान दास वैष्णव ने कला प्रशिक्षण पर विशिष्ट उद्बोधन दिया। वरिष्ठ व्याख्याता प्रकाश दीक्षित, प्रशान्त चौधरी, मधुबाला शर्मा उपास्थित रहे।
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