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हिंदू नववर्ष 2025: नए संकल्प, नई उमंग, नई ऊर्जा और सांस्कृतिक उल्लास का शुभारंभ

Khushal Luniya
Desk Editor

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विक्रम संवत् 2082 का आगमन – परंपरा, आस्था और नए संकल्पों के संग एक दिव्य शुरुआत


30 मार्च 2025 को हिंदू नववर्ष (विक्रम संवत् 2082) का शुभारंभ हो रहा है। यह दिन भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा में एक विशेष स्थान रखता है। यह सिर्फ एक कैलेंडर की नई शुरुआत नहीं, बल्कि हमारे जीवन में नए संकल्प, नई उमंग और नई प्रेरणा का प्रतीक है।


नववर्ष की महिमा

हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। यही वह दिन है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन महाराज विक्रमादित्य ने विक्रम संवत् की स्थापना की थी, और इसी दिन प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक भी हुआ था। गुड़ी पड़वा और चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ भी इसी दिन होता है, जो इसे और भी पवित्र और महत्वपूर्ण बनाता है।


नववर्ष के स्वागत की परंपराएँ

नए साल का स्वागत उत्साह और उमंग के साथ किया जाता है। आइए जानते हैं इसे मनाने की कुछ परंपराएँ—

  • गुड़ी पड़वा: महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा कहा जाता है, जहां घरों के बाहर गुड़ी (ध्वज) लगाकर समृद्धि की कामना की जाती है।
  • ध्वजारोहण: कई स्थानों पर केसरी ध्वज फहराया जाता है, जो धर्म, शौर्य और विजय का प्रतीक है।
  • घर की सजावट: आंगन में रंगोली बनाई जाती है, तोरण और आम के पत्तों से घरों को सजाया जाता है।
  • सात्विक भोजन: इस दिन मीठे और शुद्ध सात्विक भोजन का विशेष महत्व होता है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
  • नव संकल्प: इस शुभ दिन पर लोग नए संकल्प लेते हैं, जिससे उनका जीवन बेहतर बन सके।

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धर्म और संस्कृति का उत्सव

हिंदू नववर्ष केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं की पुनर्स्थापना का अवसर भी है। यह दिन हमें अपने इतिहास, मूल्यों और धर्म की ओर लौटने की प्रेरणा देता है।

जैसा कि कविता में कहा गया है—

"आओ नववर्ष का करें सम्मान,
धर्म, संस्कृति का रखें मान।
संकल्प लें एक नई उड़ान,
भारत बने फिर से महान!"

आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!


“नव संकल्पों के संग हिंदू नववर्ष” पर एक कविता

नव प्रभात का मधुर संदेश,
संग लाया है नई क्लेश-रहित देश।
चैत्र शुक्ल की प्रथम उजास,
हर मन में भर दे विश्वास।

सुनो, हवाओं में गूंजे गान,
नववर्ष की जय-जयकार महान!
रंग-बिरंगी अल्पनाएँ सजे,
हर द्वार पर मंगल दीप जले।

सूर्य किरणें बरसाए तेज,
गूंजे मंत्रों का दिव्य संदेश।
गुड़ी पड़वा और नव संवत्सर,
आओ मनाएँ संग मिलकर।

कोयल की कूक, बांसुरी की तान,
गूंजे हर ओर मधुर गान।
फूलों की खुशबू, बसंती बहार,
हर हृदय में हो प्रेम अपार।

केसरी ध्वज ऊँचा उठे,
रामराज्य की राह सजे।
श्रीराम, श्रीकृष्ण का आशीष मिले,
हर जीवन में सत्कर्म खिले।

आओ नववर्ष का करें सम्मान,
धर्म, संस्कृति का रखें मान।
संकल्प लें एक नई उड़ान,
भारत बने फिर से महान!

लेखक - खुशाल लुणिया

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