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भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय | Bharat Ratna Mahamana Madan Mohan Malviya

"जब मैं मालवीय जी से मिला....वो मुझे गंगा की धारा की तरह निर्मल और पवित्र लगे। मैंने तय किया मैं उसी निर्मल धारा में गोता लगाउंगा।"-महात्मा गांधी

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प्रारंभिक परिचय
भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयागराज में एक ब्राह्मण परिवार में पंडित बृजनाथ की धर्मपत्नी मूनादेवी की कोख से हुआ। इनके पूर्वज मालवा क्षेत्र के रहने वाले थे अतः ये मालवीय कहलाएं। महाजनी पाठशाला के बाद धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद विद्यावर्दिनी सभा द्वारा संचालित स्कूल में भर्ती हुए।

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कविताओं से शुरू होकर शिक्षक, पत्रकार तथा वकील बनने तक मदनमोहन मालवीय का सफर

इस दौरान मदनमोहन मालवीय मकरंद नाम से कविताएं लिखने लगे। 16 की आयु में इनका कुंदन देवी से विवाह हुआ। 1879ई में मुइर सेंट्रल कालेज से 10वीं उत्तीर्ण करने के बाद हैरीसन कालेज के प्रिंसिपल द्वारा मालवीय को मासिक छात्रवृत्ति दी जाने लगी।

  • 1884 में इलाहाबाद के सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक बन गए। 1886 के कलकत्ता सम्मेलन में मालवीय के उद्बोधन से दादाभाई नौरोजी प्रभावित हुए।
  • 1887ई में स्कूल से इस्तीफा देकर हिंदुस्तान के संपादक बने।
  • 1891 में एल एल बी ( L.L.B. ) करने के बाद वकालत शुरू की। ये एक प्रतिभाशाली वकील थे। 1911 में उन्होंने वकालत प्रेक्टिस छोड़ दी केवल चौरी चौरा कांड में क्रांतिकारियों की पैरवी की।
  • 1912-19 तक इंपीरियल विधान परिषद के सदस्य रहे।
  • 1928 में साइमन कमीशन का विरोध किया।
  • 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। गांधी जी के नमक आंदोलन के समय इन्हें भी गिरफ्तार किया गया।
  • 1933 में सनातन धर्म पत्रिका की शुरुआत की। उन्होंने सत्यमेव जयते शब्द को लोकप्रिय बनाया।
  • 1933 में ही उन्होंने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।

उनका मानना था कि “यदि आप मानव आत्मा की आंतरिक पवित्रता को स्वीकार करते हैं तो आप या आपका धर्म किसी भी व्यक्ति के स्पर्श या संगति से किसी तरह अशुद्ध नहीं हो सकता” उन्होंने अछूतों को मंत्र दीक्षा दी और कालाराम मंदिर में प्रवेश दिलाया। उन्होंने भारती भवन पुस्तकालय इलाहाबाद और हिंदू हास्टल की स्थापना की।

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मालवीय जी ने गंगा पर बांध बनाने का विरोध किया। गंगा महासभा की स्थापना कर जन जागरण किया और अंग्रेजों को अविरल गंगा रक्षा समझौता 1916के लिए बाध्य किया। हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा आरती प्रारंभ करवाई। मालवीय जी को बंधुआ मजदूरी प्रथा के ही एक रुप गिरमिटिया मजदूरी प्रथा को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। मदनमोहन मालवीय ने अंग्रेजों द्वारा स्थापित ब्रिटिश स्काउट गाइड द्वारा भारतीय छात्रों से किए जा रहे भेदभाव को देखा तो 1928 में हिंदुस्तान स्काउट गाइड की स्थापना की तथा मामोमा शोर्ट कोड गुप्त भाषा का प्रचलन किया।

महात्मा गाँधी ने मदनमोहन मालवीय को महामना की उपाधि दी, 24 दिसंबर 2014 को भारत रत्न

गांधी जी ने उन्हें महामना की उपाधि दी तो भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डाक्टर एस राधाकृष्णन ने उन्हें कर्मयोगी का दर्जा दिया। वे भारतीय राजनीति के स्तंभ थे। 1886 में उन्होंने दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे सम्मेलन में भाग लिया। वे 1909,1918,1932 व 1933 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। वे नरमपंथी और गरमपंथी नेताओं के मध्य सेतु थे। 24 दिसंबर 2014 को उन्हें भारत रत्न दिया गया।

महामना मदनमोहन मालवीय के अनुसार शिक्षा को न केवल ज्ञान प्रदान करना चाहिए बल्कि छात्रों को सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और सामाजिक जिम्मेदारी का महत्व भी सिखाना चाहिए। उनके अनुसार शिक्षा के उद्देश्य है –

  • व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास, शारीरिक विकास, चरित्र गठन हेतु शिक्षा, राष्ट्रीयता की भावना का विकास, सेवा भावना का विकास।
  • हिंदी की उन्नति के लिए 1907 में अभ्युदय साप्ताहिक,1915 में दैनिक मर्यादा का प्रकाशन किया व 1924-46 तक हिंदुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष रहे व 1936 में दैनिक हिन्दुस्तान का प्रकाशन किया। अंग्रेजी समाचार पत्र द लीडर का सम्पादन किया।

1911 में डाक्टर एनीबीसेंट की मुलाकात के बाद सेंट्रल हिंदू कालेज के स्थान पर 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय उनकी देशभक्ति और प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण है।
महामना मदनमोहन मालवीय मानवतावाद के पोषक थे। वे विद्यार्थियों को आदर्श मानव बनने के लिए सदैव प्रेरित करते थे। मालवीय का विद्यार्थियों को उपदेश था -सत्य, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, विद्या, देशभक्ति, सहजत्याग द्वारा अपने समाज में सम्मान के योग्य बनों।

मदनमोहन मालवीय परंपरावादी थे। सनातन धर्म के सिद्धांतों में विश्वास रखते थे। उनके सभी को अपने अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। वे निष्काम कर्म में विश्वास रखते थे।उनका जीवन हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान को समर्पित था।

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विद्यार्थियों के लिए मदनमोहन मालवीय का सन्देश

महामना मदनमोहन मालवीय मानते थे कि जीवन का सर्वांगीण विकास शिक्षा का मूलमंत्र हो। शिक्षा की ऐसी व्यवस्था हो कि विद्यार्थी अपनी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक शक्तियों का विकास कर आगे चलकर किसी व्यवसाय द्वारा सच्चाई और ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह कर सके, कलापूर्ण सौंदर्य मय जीवन व्यतीत कर सके, समाज के आदरणीय और विश्वासपात्र बन सके तथा देशभक्ति एवं जो मनुष्य को उच्च कोटि की सेवा को प्रेरित करती है अपने जीवन को अलंकृत कर राष्ट्र की सेवा कर सके।

मदनमोहन मालवीय

महिला सशक्तिकरण के हिमायती मदनमोहन मालवीय

उनका कहना था –“मैं चाहता हूं कि हमारे देश की सभी स्त्रियां अंग्रेज महिलाओं की भांति पिस्तौल और बंदूकें रखें तथा उनको चलाना सीखे ताकि वे किसी भी आक्रमण से अपनी रक्षा कर सके”

12 नवंबर 1946 को वे हमारे बीच नहीं रहे। उनका वाराणसी में देहावसान हो गया। उनकी स्मृति में स्वतंत्र भारत में कई संस्थान स्थापित किए गए हैं। भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है। महामना मदनमोहन मालवीय का योगदान अमर है, हम सभी भारतीय उनके जीवन से प्रेरणा लेकर उनके सपनों का भारत बनाएं।

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लेखक के बारे में

विजय सिंह माली प्रधानाचार्य- श्री धनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी (पाली) मोबाइल 9829285914 vsmali1976@gmail.com

न्यूज़ डेस्क

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