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Fire Accident: सुबह 6:45 की घटना, विनाशकारी आग ने ली अमूल फैक्ट्री की सांसें, आंखों देखा हाल सुनकर रूह कांप उठे

जमशेदपुर के सिमुलडांगा गांव में शनिवार सुबह अमूल प्लांट के गोदाम में भीषण आग लग गई। हादसे में पूरा गोदाम और उसमें रखा दूध, दही और मक्खन जलकर खाक हो गया। करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन राहत की बात यह रही कि कोई जान-माल की हानि नहीं हुई।

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Khushal Luniya
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Fire Accident: जमशेदपुर में अमूल प्लांट में लगी भीषण आग, करोड़ों का नुकसान – लोग सदमे में


जमशेदपुर। शनिवार सुबह झारखंड के औद्योगिक शहर जमशेदपुर के सिमुलडांगा गांव स्थित अमूल के एक गोदाम में अचानक भीषण आग लग गई। आग इतनी तीव्र थी कि उसने कुछ ही मिनटों में पूरे गोदाम को अपनी चपेट में ले लिया और गोदाम के अंदर संग्रहित ताजा दूध, दही, मक्खन एवं अन्य डेयरी उत्पादों सहित विभिन्न सामग्री पूरी तरह जलकर राख हो गई। स्थानीय लोगों की प्राथमिक सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड तुरंत घटनास्थल पर पहुंची, लेकिन तब तक करोड़ों रुपये की संपत्ति जल चुकी थी। घटना की सूचना एमजीएम थाना को दी गई और पोषण सुरक्षा अधिकारियों ने भी मौके का जायजा लिया।

Fire Accident: आग लगने का समय-क्रम और घटना विवरण

  • समय: घटना शनिवार सुबह लगभग 7:30–8:00 बजे के बीच हुई।
  • स्थान: राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सिमुलडांगा गांव, एमजीएम थाना क्षेत्र, जमशेदपुर।
  • प्रारंभिक सूचना: स्थानीय किसान और राहगीर जब प्लांट के निकट से गुजरे तो उन्होंने धुएँ का गुब्बारा देखा और धुंए की गंध वत्सल महक वाले उत्पादों के जलने की तपिश महसूस की।
  • प्रथम प्रतिक्रिया: स्थानीय लोगों ने तत्काल फोन कर फायर स्टेशन को सूचित किया। करीब 10–15 मिनट के भीतर फायर ब्रिगेड गाड़ियाँ पहुंचीं।
  • आग की तीव्रता: गोदाम में जमा कच्चे दूध और डेयरी उत्पादों में ग्रीस तथा वसा की मौजूदगी ने आग को इन्टेन्स पहनाया। गोदाम की छोटी दीवारों के कारण भीषण ताप त्वरित प्रसार में सहायक रहे।
  • आग लगने का कारण: अभी तक आधिकारिक कारण का खुलासा नहीं हो सका। प्राथमिक अनुमान तांत्रिक परेशानी (इलेक्ट्रीक शॉर्ट सर्किट), बिजली के तारों की अधूरी मरम्मत या किसी चिमनी से फेंके जाने वाले जलते कण हो सकते हैं।
  • तलाश और छानबीन: पुलिस मामले की जांच में जुटी है। फॉरेंसिक अग्नि विभाग द्वारा ध्वस्त अवशेषों से साक्ष्य संकलित किए जा रहे हैं।

क्षतिग्रस्त परिसंपत्ति और आर्थिक हानि

  • गोदाम का आकार: लगभग 10,000 वर्ग फुट में फैला गोदाम, जहां डेयरी उत्पाद दिनों-दिन आवश्यकतानुसार भरकर रखे जाते थे।

  • नष्ट सामग्री:

    • ताजा दूध टैंकर: 50,000 लीटर (औसतन ₹50 प्रति लीटर मूल्य → ₹2.5 करोड़)

    • दही कंटेनर: 2,000 यूनिट (प्रति यूनिट औसत ₹30 → ₹0.6 लाख)

    • मक्खन पैकेट: 5,000 किलो (प्रति किलो ₹400 → ₹20 लाख)

    • अन्य डेयरी उत्पाद (छाछ, पनीर आदि): करीब ₹30 लाख मूल्य

  • संपूर्ण अनुमान: स्थानीय सूत्रों के अनुसार, गोदाम में राख हुए उत्पादों का कुल मूल्य एक से डेढ़ करोड़ रुपये के बीच आंका जा रहा है।
  • स्टोरिंग व इंफ़्रास्ट्रक्चर का नुकसान: गोदाम की संरचना ध्वस्त, रेफ्रिजरेशन युनिट्स, पाइपलाइन, विद्युत उपकरण, सुरक्षा प्रणाली सब जलकर नष्ट। अनुमानित हानि में गोदाम इन्फ्रास्ट्रक्चर ₹1–1.5 करोड़ जोड़ने से कुल नुक़सान ₹2.5–3 करोड़ के आस-पास माना जा सकता है।

आग बुझाने के प्रयास एवं आपात प्रतिक्रिया

  • सूचना एवं मोबाइल अलर्ट: स्थानीय लोगों ने एमजीएम थाना पर फोन कर घटना की सूचना दी।

  • फायर ब्रिगेड की तैनाती
    1. जमशेदपुर शहर केंद्रीय फायर स्टेशन से तीन इमरजेंसी फ्रेटेक्टर और एक सीढ़ीनुमा वाहन तत्काल रवाना हुए।
    2. वाटर टैंकर के साथ चलने वाली बड़ी गाड़ियों ने हाई-प्रेशर नोजल से आग पर हमला किया।

  • प्राथमिक काबू
    1. आग लगने के 40 मिनट बाद कूलिंग संचलन शुरू हुआ।
    2. दो घंटे बाद पूरी आग नियंत्रित हुई, पर सेंटीग्रेड तापमान के चलते अंदर की संरचना ध्वस्त हो चुकी थी।

  • इंसानी प्रयास
    1. स्थानीय ग्रामीणों ने बाल्टियाँ विन्दुओं से पानी भरकर सहयोग किया।
    2. पास के पेट्रोल पंप व फायर हाइड्रेंट से अतिरिक्त जलापूर्ति हुई।

  • चिकित्सा और बचाव कार्य: सौभाग्यवश कोई मानव हताहत नहीं हुआ; दो फायरमैन हल्की चोटों के साथ अस्पताल में भर्ती।

  • आग बुझाने के बाद की कार्रवाई
    1. फॉरेंसिक टीम ने अवशेषों से नमूने लिए।
    2. गोदाम के आसपास रेड पुरीकरण कर सुरक्षित चहारदीवारी बनायी गई।


स्थानीय लोगों व प्रभावित पक्षों की प्रतिक्रिया

  • स्थानीय ग्रामीण
    1. “धुआँ इतना घना था कि लगा जैसे दिन में रात हो गई हो।” – रमेश कुमार, पास के खेत से गुजर रहे किसान
    2. “पहले भी कभी औद्योगिक दुर्घटनाएँ सुनी थीं, लेकिन इतनी भीषण आग देखी नहीं।” – सीमा देवी, महिला किसान

  • फैक्ट्री कर्मचारी: “हम समय पर पहुंचे, लेकिन अंदर कुछ भी बचेगा नहीं, सब जल गया।” – अनुज तिवारी, गोदाम देख-रेख कर्मी

  • फैक्ट्री मालिक: घटना के बाद सार्वजनिक बयान देने की स्थिति में नहीं दिखे, सूत्रों के अनुसार भारी सदमे में हैं।

  • पुलिस एवं प्रशासन
    1. थाना प्रभारी ने कहा कि निरीक्षण जारी है और दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
    2. स्थानीय बीएमओ (ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर) ने इमरजेंसी सेवाएँ तैनात रखी हैं।


फैक्ट्री परिसर एवं सुरक्षा मानक

  1. संरचनात्मक अवयव

    • स्टील फ्रेम व टिन की छत, जो उच्च तापमान पर शीघ्र कमजोर होती है।

    • अंदर छह रेफ्रिजरेशन युनिट्स, जिनका विद्युत सुचारू संचालन नहीं था।

  2. सुरक्षा उपाय

    • पास में केवल दो हैंड-हेल्ड फायर एक्सटिंगुइशर थे।

    • कोई स्प्रिंकलर सिस्टम या स्वचालित डिटेक्शन अलार्म नहीं।

    • गोदाम कर्मचारियों को आपातकालीन ड्रिल की ट्रेनिंग नहीं मिली।

  3. विनियामक अनुपालन

    • मानक आग सुरक्षा प्रमाणीकरण (आईएस 2190) की वैधता समाप्त होने की खबर।

    • स्थानीय अग्नि अधिकारी ने बताया कि दो महीने पहले ही निरीक्षण हुआ, पर सुधारात्मक नोटिस जारी हुआ था।


अमूल प्लांट की परिचय–इतिहास और महत्व

  • अमूल (गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन)
    1. देश का सबसे बड़ा डेयरी संगठन, “भारत का दूध” के नाम से जाना जाता है।
    .2. सहकारी मॉडल पर आधारित, जिसकी नींव 1946 में वैचारिक आंदोलन के दौरान पड़ी।

  • जमशेदपुर प्लांट
    1. संचालन प्रारंभ: 2015
    2. क्षमता: प्रतिदिन 1 लाख लीटर दूध प्रसंस्करण
    3. उत्पाद: ताजा दूध, मक्खन, पनीर, दही, घी, फ्लेवर मिल्क
    4. स्थानीय वितरण नेटवर्क: कोलकाता, पटना, रांची, भागलपुर

  • क्षेत्रीय महत्व
    1. सिमुलडांगा प्लांट से ग्राहकों तक ताजा उत्पाद 4–6 घंटे में पहुंच जाते थे।
    2. छोटे कृषक-सदस्यों को स्थिर मांग और उचित मूल्य की गारंटी।


झारखंड में डेयरी उद्योग का परिदृश्य

  • कुल उत्पादन: झारखंड प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख टन दूध का उत्पादन करता है (2023–24 में 14.8 लाख टन)।

  • सहकारी समिति: क्षेत्रीय डेयरी सहकारी समितियों ने किसान आय बढ़ाने में भूमिका निभाई।

  • विस्तार: रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, देवघर में प्रसंस्करण इकाइयाँ।

  • चुनौतियाँ:

    • ट्रांसपोर्ट लॉजिस्टिक्स में तापमान नियंत्रण

    • आपात स्थिति में कोल्ड चेन टूटी तो उत्पाद बर्बाद

    • ग्रामीण इलाकों में प्रशिक्षण व तकनीकी पहुँच सीमित

  • सरकारी पहल:

    • डेयरी मिशन फेज-II (NDDB) के तहत सब्सिडी और तकनीकी सहायताएँ

    • प्रधानमंत्री मत्स्य एवं दुग्धग्राम योजना

Fire Accident in Jharkhand of Amul Milk WareHouse
Fire Accident in Jharkhand of Amul Milk WareHouse

औद्योगिक अग्नि सुरक्षा: चुनौतियाँ व उपाय

चुनौतियाँ

  1. पुरानी संरचनाएँ: कई गोदाम ब्लास्टफ्री प्रूफ नहीं होते।

  2. अनुचित रख-रखाव: विद्युत वायरिंग में फ़ाल्ट्ज से आग लगने का जोखिम।

  3. प्रशिक्षण-अभाव: कर्मियों को आपात स्थिति में बचाव कार्य का प्रशिक्षण नहीं।

उपाय

  • स्वचालित स्प्रिंकलर व डिटेक्शन सिस्टम

  • नियमित ड्रिल व ट्रेनिंग

  • मल्टी-चैनल अलार्म

  • मॉड्यूलर फायर ब्रेकर

  • इलेक्ट्रिकल सुरक्षा ऑडिट


संभावित कारणों की छानबीन और आगे की कार्रवाई

  1. फॉरेंसिक अग्नि जांच

    • आग की शुरुआत के क्षेत्र–उत्पत्ति केन्द्र का निर्धारण।

    • विद्युत पैनल, तार-तारिकाओं की स्थिति का परीक्षण।

  2. प्रशासनिक पूछताछ

    • गोदाम प्रबंधक और रात्रि शिफ्ट स्टाफ से बयान।

    • सुरक्षा अधिकारी के अनुपालन दस्तावेजों की विवेचना।

  3. कानूनी कार्रवाई

    • यदि लापरवाही पाई गई तो मुनाफाखोरों पर जुर्माना एवं लाइसेंस निलंबन।

  4. बीमा क्लेम प्रक्रिया

    • बीमा कंपनी को घटना की रिपोर्टिंग

    • अवशेषों का मुआवज़ा निर्धारण


आर्थिक-सामाजिक प्रभाव एवं बहाली की संभावनाएं

  • किसान-सदस्यों की आमदनी: गोदाम क्षति से निकट अवधि में दूध खरीद कम हो सकता है, जिससे किसान-आमदनी प्रभावित।

  • बाजार में उत्पादों की कमी: स्थानीय आपूर्ति खण्डित, कीमतों में टेम्पररी बढ़ोतरी।

  • नए निवेश की आवश्यकता: क्षतिग्रस्त संरचना पुनर्निर्माण में कम से कम 1.5–2 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश।

  • रोज़गार: अस्थायी तौर पर गोदाम कर्मचारी बेरोज़गार, पुनर्नियुक्ति पर निर्भर।

  • बहाली उपाय

  1. अस्थायी गोदाम: पास में बसे अधीनस्थ गोदामों का उपयोग
  2. वैकल्पिक सप्लायर: समीपवर्ती अमूल प्लांट से अस्थायी खरीद
  3. सरकारी अनुदान: झारखंड डेयरी मिशन से सब्सिडी

जमशेदपुर के सिमुलडांगा गांव में अमूल प्लांट में हुए भीषण Fire Accident ने दिखाया कि औद्योगिक सुरक्षा और आपात प्रबंधन में छोटी-छोटी चूकें किस प्रकार बड़े मानवीय व आर्थिक संकट का कारण बन सकती हैं। अगर समय रहते तकनीकी निवेश, प्रशिक्षण, और कड़ाई से नियामकीय अनुपालन होता, तो करोड़ों रुपये की संपत्ति बचाई जा सकती थी। अब मुख्य चुनौतियाँ हैं—घायल पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्निर्माण, किसान-आमदनी की रक्षा, और भरोसा बहाल करने के लिए पारदर्शी जांच एवं प्रबंधन। इस घटना ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सहकारी मॉडल की मजबूती के साथ-साथ सुरक्षा के आधुनिक उपायों को अपनाना भी उतना ही आवश्यक है, ताकि स्थिरता के साथ सतत् विकास सुनिश्चित हो सके।


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