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शीतला सप्तमी पर विशेष आलेख

वंदे शीतलां देवी रासभस्थां दिगंबराम्। मार्जनीकलशांपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

भावार्थ – गदर्भ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं।।

आज चैत्र कृष्णा सप्तमी यानी शीतला सप्तमी है ।आज उत्तरी भारत विशेषकर राजस्थान में आरोग्य तथा स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी शीतला का पूजन-अर्चन किया जाता है तथा बास्योड़ा का भोग लगाया जाता है तथा शीतलता व संक्रामक रोगों से मुक्ति की कामना की जाती है।

स्कंद पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि को रोग मुक्त रखने का कार्यभार देवी शीतला को सौंपा था।

एक बार माता शीतला ने सोचा कि चलू देखू कि पृथ्वी पर उनकी पूजा कौन करता है,कौन उन्हें मानता है। शीतला माता बूढ़ी महिला का रुप धारण कर धरती पर डूंगरी गांव पहुंची। माता शीतला गांव की गलियों में घूम रही थी कि एक मकान के उपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका।उबलता पानी शीतला माता के उपर गिरने से उनके शरीर पर फफोले हो गए।जलन से त्रस्त होकर वह मदद के लिए चिल्लाई लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।घर के बाहर बैठी एक कुम्हार महिला को दया आ गई उसे लगा कि बूढ़ी काफी जल गई है। उसने बूढ़ी पर ख़ूब ठंडा पानी डाला और बोली -“मेरे घर पर रात की बनी हुई राबड़ी और दही है। वह खा ले।

“बूढ़ी महिला ने रात की बनी हुई राबड़ी व दही खाया तो शरीर को ठंडक मिली। प्रसन्न होकर शीतला माता ने कुम्हार महिला को दर्शन दिए और घर में खड़े गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू तथा दूसरे में डलिया लेकर महिला के घर की दरिद्रता को झाड़ कर डलिया में भरकर फेंक दिया तथा महिला से वरदान मांगने को कहा तो महिला ने हाथ जोड़कर कहा -मां, मेरी इच्छा है कि आप इसी गांव में स्थापित होकर रहो। होली के बाद की सप्तमी को भक्ति भाव से पूजा कर जो भी आपको ठंडे जल,दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाएं, उसके घर की दरिद्रता को दूर करें।” शीतला माता ने महिला को सभी वरदान दे दिए और आशीर्वाद दिया कि इस धरती पर उसका पुजारी सिर्फ कुम्हार जाति का होगा ।उसी दिन से डूंगरी गांव में शीतला माता स्थापित हो गई तथा उस गांव का नाम हो गया शील की डूंगरी। चैत्र कृष्णा अष्टमी को लोग घरों में चूल्हा नहीं जलाते हैं, चूल्हे पर तवा नहीं रखा जाता, गैस भी नहीं जलाते।सुबह जल्दी उठकर स्नान कर एक दिन पूर्व तैयार किया बासी चावल, रबड़ी, पूड़ी, सब्जी, दही व पकवान का भोग शीतला माता को लगाया जाता है तथा आरोग्य की प्रार्थना की जाती है। 1772ई.मे जोधपुर के तत्कालीन महाराजा विजय सिंह जी के पुत्र की शीतला सप्तमी को मृत्यु हो जाने से शीतला अष्टमी को शीतला माता की पूजा हुई तब से अब तक जोधपुर समेत कई स्थानों पर शीतला अष्टमी मनाई जाती है। शीतला सप्तमी को जगह जगह मेलों का आयोजन होता है। चाकसू स्थित शील की डूंगरी का मेला,सोजत का शीतला माता मेला प्रसिद्ध है। सादड़ी में भी शीतला माता का भव्य मेला भरता है। हम भी शीतला सप्तमी पर शीतला माता के दर्शन कर पूजा अर्चना करें तथा आरोग्य की कामना करते हुए स्वच्छता को अपना स्वभाव व संस्कार बनाएं।

शीतला:तू जगत माता, शीतला:तू जगत पिता,
शीतला:तू जगदात्री, शीतलयै नमो: नमः।।

Khushal Luniya

Khushal Luniya is a young kid who has learned HTML, CSS in Computer Programming and is now learning JavaScript, Python. He is also a Graphic Designer. He is playing his role by being appointed as a Desk Editor in Luniya Times News Media Website.

2 Comments

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