विश्व उपभोक्ता दिवस (15मार्च) पर विशेष ब्लॉग – उपभोक्ता शिक्षा
"उपभोक्ता या ग्राहक हमारे पास आने वाले सबसे महत्वपूर्ण आगंतुक है।वह हमारे कार्य में बाधक नहीं है, उद्देश्य है, हम उनकी सेवा करके उन पर अहसान नहीं कर रहे बल्कि वह हमें सेवा का अवसर प्रदान कर हम पर अहसान कर रहे है।" - महात्मा गांधी
प्रधानाचार्य, श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी जिला पाली विजय सिंह माली
किसी भी राष्ट्र की आर्थिक प्रणाली में उपभोक्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाजार में उपभोक्ताओं की भूमिका प्रमुख होती है और उनके उपभोग की प्रवृत्तियां समाज एवं अर्थव्यवस्था को बड़े स्तर पर प्रभावित करती है। विपणन के आधुनिक दर्शन में उपभोक्ता राजा है और व्यापार से अपेक्षा है कि वह उपभोक्ता को जहां तक संभव है कि संतुष्टि प्रदान करे।
किसी उपभोक्ता को आमतौर पर किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में समझा जाता है जो सामान का उपयोग या उपभोग करता है या किसी सेवा को काम में लेता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत “एक उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो किसी सामान को खरीदता है या सेवाएं प्राप्त करता है जिसका भुगतान किया गया है या भुगतान करने का वादा किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान करने का वादा किया गया है।”सचमुच उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो स्वयं के प्रयोग के लिए अथवा स्वरोजगार के माध्यम से आजीविका चलाने के लिए, किसी वस्तु या सेवा को मूल्य अदा कर खरीदता है, अदायगी निम्न रूप में हो सकती है –
नकद भुगतान करके भुगतान का वादा करके कुछ हिस्से का भुगतान तथा कुछ का वादा करके इसमें वस्तु अथवा सेवा के खरीददार सहित वे सभी लाभार्थी शामिल हैं जो खरीददार की सहमति से उसका उपभोग करते हैं। सेवाओं के क्षेत्र में उपभोक्ता का अर्थ है वह व्यक्ति जो किसी सेवा अथवा सेवाओं को किराए पर लेता है या उनका प्रयोग करता है। इस दृष्टि से हम सभी उपभोक्ता हैं।
उपभोक्ता अधिकारों से हमारा अभिप्राय ऐसे अधिकारों से है जहां ऐसे तर्क़ दिए जाते हैं जो उपभोक्ता हितों को सुरक्षित करने के लिए कानूनी स्तर पर प्रदान किए जाने चाहिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986व 2019 उपभोक्ताओं के छह अधिकारों की बात करता है-
1.सुरक्षा का अधिकार – जीवन एवं संपत्ति के लिए ख़तरनाक वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार। खरीदी गई वस्तु या सेवाओं को सुरक्षा मान दंड पूरा करना अनिवार्य है।
2.सूचित होने का अधिकार(सूचना प्राप्त करने का अधिकार)- उपभोक्ता को अनुचित व्यापारिक व्यवहारों से संरक्षण प्रदान करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक और कीमत के बारे में सूचना पाने का अधिकार। वस्तु तथा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा क्षमता, शुद्धता, मानक तथा मूल्य के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार ताकि किसी भी अनुचित व्यापार व्यवहार के विरुद्ध उपभोक्ता को संरक्षित किया जा सके।
3.चयन का अधिकार –इसका अर्थ है जहां संभव हो उचित कीमत पर वस्तुओं तथा सेवाओं की विभिन्नता तक पहुंच के आश्वासन का अधिकार। दूसरे शब्दों में उपभोक्ता को अपनी मर्जी की वस्तु खरीदने का अधिकार है।
4.सुनवाई का अधिकार – सुने जाने और यह सुनिश्चित करने का अधिकार कि समुचित मंचों द्वारा उपभोक्ताओं के हितों पर अपेक्षित ध्यान दिया जाएगा।उपभोक्ता के हितों का उपयुक्त मंच पर विचार किया जाएगा इसमें उपभोक्ता कल्याण के विचार के लिए निर्मित मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार भी निहित है।
5.क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार (शिकायत के निवारण का अधिकार)-अनुचित व्यापार व्यवहार अथवा सीमित व्यापार व्यवहार अथवा उपभोक्ता के अनैतिक शोषण के विरुद्ध शिकायत निवारण या क्षतिपूर्ति का अधिकार।
6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- इसका अर्थ है कि एक जानकार उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान तथा निपुणता प्राप्त करना।
अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू है-
- उपभोक्ता के रूप में हमारे दो तरह का कर्तव्य है अपने ही अधिकारों को कार्यान्वित करने से संबंधित आईएसआई द्वारा प्रमाणित, एगमार्क प्रमाणित समान ही खरीदे।
- उपभोक्ता के रूप में समाज एवं पर्यावरण के संदर्भ में हम अपनी खरीदारी तथा उपयोग में उत्तरदायी चयन करें।
भारत में उपभोक्ता कल्याण नई बात नहीं है, वैदिक युग में भी उपभोक्ता कल्याण की बात कही जाती थी। प्राचीन काल में मुख्यतः चार प्रकार के कार्यों को आपराधिक कृत्य माना जाता था -खाद्य सामग्री में मिलावट,तय कीमत से अधिक लेना,बाट और माप में छल करना तथा प्रतिबंधित सामग्रियों की बिक्री शामिल हैं। मनुस्मृति में अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए कठोर दंड ,बाट माप राजा द्वारा चिन्हित होने, बिक्री की दर राजा द्वारा तय करने की बात कही गई। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उपभोक्ताओं के खिलाफ होने वाले अपराध को रोकना राजा के कर्तव्य के रुप में उल्लेखित किया गया है।
अंग्रेजों के समय भारतीय संविदा अधिनियम 1872, वस्तु विक्रय अधिनियम 1930द्वारा उपभोक्ता कल्याण की दिशा में कदम बढ़ाया गया।देश की आजादी के बाद उपभोक्ता कल्याण की दृष्टि से समय समय पर कई कानून बनाएं गए। इनमें औषधि अधिनियम 1950, खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954, औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम 1954, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955, निर्यात गुणवत्ता नियंत्रण और निरीक्षण अधिनियम 1963, एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम 1969, बाट माप मानक अधिनियम 1976, चोर बाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम 1980 प्रमुख हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 9 अप्रेल 1985 को एक प्रस्ताव पारित कर उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित मार्गदर्शक सिद्धांतों के प्रारुप को स्वीकार किया तथा सदस्य देशों को उपभोक्ता हितों के बेहतर संरक्षण के लिए नीतियों एवं कानूनों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
भारतीय संसद ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम नामक एक क्रांतिकारी कानून पारित किया। यह कानून सामाजिक आर्थिक विधान के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसने बाजार में उपभोक्ता की सीधी भागीदारी सुनिश्चित कराते हुए जनकल्याण के लिए प्रेरित किया। इस अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को छ अधिकार प्रदान किए गए। 24दिसंबर को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रुप में मनाया जाता है। 2019 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया गया।
तीन स्तरीय उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र स्थापित किया गया है।
- जिला में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम
- राज्य में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
- राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
जिला मंच में 20 लाख तक के दावे के लिए, राज्य आयोग में 1करोड तक के दावे के लिए और इससे अधिक का दावा होने पर राष्ट्रीय आयोग में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। कोई भी पीड़ित उपभोक्ता या स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन या सरकार शिकायत दर्ज करा सकता है। उपभोक्ता संरक्षण के लिए उपभोक्ता मामले विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है।इस विभाग की वेबसाइट है- WEBSITE अपनी उपभोक्ता संबंधी जानकारी, शिकायत हेतु टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन 1800114000 पर प्रत्येक कार्य दिवस को सुबह 9.30 से सायं 5.30 के बीच फोन कर सकते हैं। राजस्थान की राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइन 18001806030 का उपयोग भी कर सकते हैं।राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइन ज्ञान संसाधन प्रबंधन पोर्टल की वेबसाइट http://www.consumeradvice.in का सहयोग भी ले सकते हैं।
उपभोक्ता जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जिस उपभोक्ता को राजा के रुप में संदर्भित किया जाता है वह वास्तव में बाजार के कदाचारों का शिकार है।उपभोक्ता को सशक्त,सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने के लिए उपभोक्ता शिक्षा जरूरी है। सशक्त उपभोक्ता ही सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं, अपने अधिकारों को जानते हैं तथा अधिकारों का हनन होने पर शिकायत दर्ज कराकर उसके समाधान की मांग कर सकते हैं। उपभोक्ता शिक्षा नागरिकों को और अधिक सक्रिय तथा सूचित बना कर समाज को लाभ पहुंचाती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी ने 15 मार्च 1962 को उपभोक्ता अधिकारों के मुद्दे पर औपचारिक रुप से अमेरिकी संसद को संबोधित किया था। वह ऐसा करने वाले दुनिया के पहले नेता थे। इसलिए उपभोक्ता अधिकारों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने तथा उपभोक्ता आंदोलन को पहचान दिलाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस के रुप में मनाया जाता है। विश्व उपभोक्ता दिवस पर हम संकल्प लें कि हम उपभोक्ता अधिकार जानकारी कर्तव्यों का पालन करेंगे तथा उपभोक्ता शिक्षा के लिए अधिकाधिक प्रयास करेंगे। इसी में विश्व उपभोक्ता दिवस के आयोजन की सार्थकता है।
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