गुरलाँ
संत सेन जी महाराज जयंती 5 मई को भीलवाड़ा जिले के गुरलाँ से सत्यनारायण सेन की जुबानी जब भी भारत की भूमि पर आदमी अज्ञानता के अंधेरे में भटका है तब तब धरती पर महान आत्मा ने जन्म दिया और मनुष्य को सही राह दिखाई।
इन आत्माओं के सत्कर्मों के कारण भगवान का दर्जा देकर पूजा जाने लगे लगभग पांच सौ साल पहले एक महान संत सेन जी महाराज का अवतरण (जन्म) हुआ जिससे बाधवगढ़ की प्रसिद्धी बढ़ा दी भक्तमाल के प्रसिद्ध टीका कार प्रियदास के अनुसार संत शिरोमणि सेन जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 के वैशाख कृष्ण पक्ष 12 (द्वादशी )के दिन रविवार को वृत योग तुला लग्न पूर्व भाद्रपदपक्ष को चन्दन्यायी के घर पर हुआ नंदा बचपन से ही विनम्र दयालु और ईश्वर में विश्वास रखने वाले थे सेन जी महाराज के ग्रहस्थ जीवन के साथ भक्ति के मार्ग पर चलने लगे.
नंदा जी सेन का जीवन स्वजातीय कर्म, साधु , सत्संग और ईश्वर आराधना में व्यतीत होता था यह साधु सत्संगी प्रेमी थे मध्यकाल में संतों में सेन जी महाराज का स्थान भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुरूप जनमानस को शिक्षा और उपदेश के माध्यम से एकरूपता से पिरोया।
सेन जी महाराज का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो गया कि जनमानस स्वत ही उनकी ओर खिंचा चला जाता था वृद्धावस्था में संत सेन जी महाराज काशी चले गए और वहां उन्होंने कुटिया बनाकर रहने लगे और लोगों को उपदेश देते थे वह क्षेत्र जहां रहते थे सेनपुरा के नाम से जाना जाता था. संत सेन जी महाराज प्रत्येक जीव में ईश्वर का दर्शन करते और सत्य, अहिंसा ओर प्रेम का सन्देश जीवन प्रर्यन्त देते रहे. संत सेन जी महाराज के जीवन की बहुत से वृत्तांत कई इतिहासकारों द्वारा दिया गया जो चमत्कारी जीवन शैली से सेन समाज को गर्व है कि सेन समाज में भी महान पुरुष हुए.
ज्ञात हो कि बिलासपुर – कटनी रेलवे लाइन पर जिला उमरिया से 32 किलोमीटर की दूरी पर बाधवगढ़ में जन्म स्थान स्थित है जो तत्कालीन रीवा नरेश वीर जी हैं जूदेव के राज्य काल मैं बांधवगढ़ का बड़ा नाम था वर्तमान में रीवा नाम से भी जाना जाता है
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