सादड़ी| समाज सुधारक प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फूले की जयंती पर किया नमन
भारत की पहली महिला शिक्षिका के रूप में प्रतिष्ठित सावित्रीबाई फुले 19वीं शताब्दी के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थीं। 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में जन्मी फुले महिला शिक्षा के लिए सामाजिक मानदंडों और सांस्कृतिक बाधाओं को चुनौतीया देते हुए संघर्षमय जीवन व्यतीत किया है.
समाज सुधारक एवं भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फूले की जयंती के अवसर पर माली समाज के वरिष्ठ लोगों के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित व पुष्पा माला अर्पित कर फुल माली समाज की वाडी, रणकपुर रोड सादडी में उनको नमन किया गया.
इस मौके पर यह रहे उपस्थित
समाज के देवराज देवड़ा, भंवरलाल टांक, एड.छगनलाल गहलोत, एंड. दिनेश कुमार माली, विजयसिंह माली प्रधानाचार्य, रूपाराम सोलंकी, बाबुलाल माली अपर लोक अभियोजक, पार्षद भेरालाल गोयल, पार्षद शंकरलाल देवड़ा,थानाराम गोयल, मांगीलाल मंडोरा परिहार, नरेश तंवर, लक्ष्मण देवड़ा, जीवराज देवड़ा, शंकरलाल परिहार प्रधानाचार्य, राजेश कुमार देवड़ा अध्यापक, गुमानमल देवड़ा, कांतिलाल गेहलोत आदि समाज के सैकड़ों लोग मौजूद थे।
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सावित्रीबाई फुले की संघर्षमय कहानी
महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखने वाली प्रचलित रूढ़िवादिता के दौर के बीच सावित्रीबाई की यह कठिन संघर्षमय यात्रा शुरू हुई। प्रचलित मानदंडों से विचलित हुए बिना, वह अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ, शिक्षा प्रणाली में क्रांति लाने के मिशन पर निकल पड़ीं। 1848 में, उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल स्थापित किया, नई ज़मीन तैयार की और उस समय के गहरे पूर्वाग्रहों को चुनौती दी।
शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सिर्फ लिंग की सीमाओं तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने सक्रिय रूप से हाशिये पर पड़ी और उत्पीड़ित जातियों की शिक्षा की वकालत की, उन लोगों के लिए दरवाजे खोले जिन्हें पारंपरिक रूप से सीखने की पहुंच से वंचित किया गया था। सावित्रीबाई ने अधिक समावेशी और समतावादी शैक्षिक वातावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गंभीर प्रतिक्रिया और सामाजिक बहिष्कार का सामना करने के बावजूद, सावित्रीबाई शिक्षा के माध्यम से ज्ञानोदय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहीं। उन्हें समाज के भीतर रूढ़िवादी तत्वों से लेकर अपने व्यक्तिगत संघर्षों तक, कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, फिर भी वह अटूट दृढ़ संकल्प के साथ अभियान को आगे बढ़ाती रहीं।
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सावित्रीबाई की विरासत उनके द्वारा स्थापित कक्षाओं से भी आगे तक फैली हुई है। वह महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों के लिए प्रेरणा बन गईं। उनकी अदम्य भावना और अग्रणी प्रयासों ने भारत में एक अधिक न्यायसंगत शैक्षिक प्रणाली की नींव रखी।
आज, जब हम महिला शिक्षा में हुई प्रगति का जश्न मनाते हैं, तो हम सावित्रीबाई फुले के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। भारत की पहली महिला शिक्षिका से लेकर समाज सुधारक बनने तक की उनकी यात्रा पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है, यह याद दिलाती है कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है और अज्ञानता की बेड़ियों को तोड़ने की कुंजी है। सावित्रीबाई की विरासत शिक्षा और सामाजिक न्याय के प्रति एक महिला की अटूट प्रतिबद्धता की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण बनी हुई है।
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