भायंदर पशिचम भव्य नवाणु यात्रा यह यात्रा 33 दिनो पुरी की जाती है ओर अपना जीवन सफल बनाते है.
शत्रुजय तीर्थ नवाणु यात्रा का महत्व अहिंसा व तपस्या प्रधान जैन धर्म के प्रथम तिॅथकर भगवान आदीनाथ (रिषभदेव) के मोक्ष कल्याणक अतिक्षय क्षेत्र पालीताणा शत्रुंजय महातीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है नवाणुयात्रा जैन धर्म मे बहुत महत्वपूर्ण है अत्यंत कठीन यात्रा होती है अपनी शक्ती नुसार उपवास ऐकासणा करके की जाती है नंगे पेर पेरो छाले पङ जाते चलने को नही होता है फिर भी यह यात्रा निर्विघ्न पुरण की जाती है 33 दिनो 99 बार शिखर पर चढकर निचे उतरना पङता है (99 बार चढाई) होती है जो तलहटी से 220 फीट ऊंचाई पर 3950 सीढीया की चढाई करनी पङती है ईतनी भंयकर गर्मी मे धन्य हो तपस्वी हम धर मे बिना ऐसी पंखे नही रह सकते धन्य है.
ऐसे महान तपस्वीओ को जिन्होने ईतनी भंयकर गर्मी मे 99 यात्रा की है स्व सुशीलाबाई भवरलालघ मेहता के सुपोत्र वंश चद्रेश मेहता ने गुरूभंगवत पूज्य मुनिराज मोक्ष दर्शन विजय , मुनिराज यशोवर्धन विजय , आगमरत्न विजय, अमितयश विजय, सुबुदिरत्न विजय की पावन निश्रा मे 99 यात्रा हर्षोल्लास के साथ निर्विघ्न परिपूर्ण हुई भायंदर पशिचम 52 जिनालय से वाजते गाजते वरधोङा निकला गया वंश को मंगल गृह प्रवेश ईदरा कोंपलेक्स मे कराया गया आमंत्रित मेहमाना की साधमिॅक भक्ती रखी गई थी.