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एक सत्य घटना: आधुनिक रूक्मणी की दर्द भरी कहानी

“जब अपनों ने छोड़ा साथ, तब स्वयं ने रचा नया इतिहास”

  • लेखक: वरिष्ठ पत्रकार घेवरचन्द आर्य
Ghevarchand Aarya
Author

Ghevarchand Aarya is a Author in Luniya Times News Media Website.

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परिचय

यह कहानी राजस्थान के पाली जिले के एक गांव की है। पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन घटना पूरी तरह सत्य है। यह एक ऐसी युवती की सच्ची कहानी है, जो बचपन में मां को खोने के बाद उपेक्षा, तिरस्कार और अकेलेपन से जूझती रही, लेकिन अंततः अपने जीवन का साहसिक निर्णय स्वयं लेकर समाज के सामने एक नई मिसाल पेश करती है।

बचपन की सबसे बड़ी क्षति: मां का साया छिन गया

लक्ष्मी मात्र सात वर्ष की थी जब उसकी मां का देहांत हो गया। पीलिया और टाइफाइड की एक साथ चपेट में आने से इलाज के बावजूद मां बच नहीं सकी। मां के जाने से घर में शोक छा गया, लेकिन यह दुःख लक्ष्मी और उसके पिता के दिल में स्थायी रूप से बस गया।

पिता का टूटता मन और परिवार की बेरुखी

शुरुआत में पिता सामान्य रहे, लेकिन कुछ वर्षों बाद जब मामा-मामी ने मां की मृत्यु का दोष उन पर मढ़ा और रिश्ता तोड़ लिया, तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। अगर परिवार ने साथ दिया होता, तो शायद वे संभल जाते, लेकिन उपेक्षा ने उन्हें समाज और घर से दूर कर दिया।

दादा-दादी की छांव में बीता किशोर जीवन

लक्ष्मी ने अपने दादा-दादी के संरक्षण में पढ़ाई की और घरेलू कार्यों में भी हाथ बंटाया। उन्हें दादा-दादी से स्नेह मिला, लेकिन जब वह विवाह योग्य आयु को पहुंची, तो उनकी वृद्धावस्था आड़े आ गई। चाचा-चाची से उम्मीद थी, लेकिन वे उसे बोझ समझने लगे और तानों व उपेक्षा से उसकी आत्मा को घायल करते रहे।

मन की पुकार: रूक्मणी से प्रेरणा

अपने दुखों से घिरी लक्ष्मी अक्सर भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती। एक दिन उसे स्वप्न आया—जिसमें श्रीकृष्ण ने उसे रूक्मणी की कथा सुनाई। कैसे रूक्मणी ने पत्र लिखकर उनसे सहायता मांगी और कृष्ण ने उसका हरण कर विवाह किया। यह स्वप्न लक्ष्मी के जीवन का मोड़ बना।

आधुनिक रूक्मणी का साहसिक निर्णय

अगले दिन लक्ष्मी ने उस युवक से संपर्क किया जो उसे देखने आया था। उसने कहा—”मैं आपकी रूक्मणी हूं, आप मेरे कृष्ण बन जाइए।” युवक ने समझदारी और साहस दिखाया। उसी रात वह लक्ष्मी को लेकर गया और अगले ही दिन विधिवत विवाह कर लिया।

अफवाहें और सच्चाई का संघर्ष

गांव में अफवाह फैल गई कि लक्ष्मी किसी विधर्मी के साथ भाग गई है। पुलिस थाने तक बात पहुंची, लेकिन तब तक लक्ष्मी अपने समाज के युवक से विवाह कर चुकी थी। उसने खुद संदेश भेजा—”मैंने धर्म और मर्यादा के अनुसार विवाह किया है, किसी विधर्मी से नहीं।”

परिवार का बंटा व्यवहार

लक्ष्मी की बुआ, पापा के मामाजी और भुडोसा ने उसका समर्थन किया, लेकिन चाचा-चाची ने समाज में गलत बातें फैलाकर संबंध तोड़ लिए। यह व्यवहार केवल निंदनीय ही नहीं, बल्कि पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ भी है।

समाज से सवाल: जिम्मेदारी किसकी?

लक्ष्मी समाज से सवाल करती है—”अगर मां-बाप नहीं हैं तो क्या लड़की बेसहारा हो जाए? क्या चाचा-चाची की कोई जिम्मेदारी नहीं? क्या लड़की को अपने जीवन का फैसला लेने का अधिकार नहीं?” जब परिवार साथ न दे, तो लड़की को अपने हक़ में निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए।

लक्ष्मी का निर्णय: साहसी और धर्मानुकूल

लक्ष्मी ने जो निर्णय लिया वह पूरी तरह से सोच-समझकर, अपने ही समाज के युवक से, विधिपूर्वक किया गया विवाह था। अब उसे सास-ससुर में माता-पिता का रूप मिल गया और चाचा-चाची की उपेक्षा से मुक्ति। यह न केवल उसका व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक रूप से भी सही निर्णय था।

वरिष्ठ पत्रकार का विश्लेषण

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यह घटना केवल लक्ष्मी की नहीं, हर उस लड़की की है जो अकेली होते हुए भी समाज में सम्मान से जीना चाहती है। समाज की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे परिवारों पर नैतिक दबाव बनाए और अगर कोई परिवार न सुधरे तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार के दायरे में लाया जाए।

निष्कर्ष: एक प्रेरक सच्चाई

लक्ष्मी की कहानी हमें सिखाती है कि—
– उपेक्षा कितनी गहरी चोट पहुंचा सकती है।
– हर लड़की को आत्मनिर्णय का अधिकार होना चाहिए।
– समाज को ऐसे मामलों में निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए।

लक्ष्मी जैसी बेटियों को समाज में सम्मान और सहयोग मिलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने धर्म, साहस और मर्यादा का रास्ता नहीं छोड़ा।

लेखक: घेवरचन्द आर्य, वरिष्ठ पत्रकार

 

न्यूज़ डेस्क

"दिनेश लूनिया, एक अनुभवी पत्रकार और 'Luniya Times Media' के संस्थापक है। लूनिया 2013 से पत्रकारिता के उस रास्ते पर चल रहे हैं जहाँ सत्य, जिम्मेदारी और राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं।

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