जहां सान्निध्य देना था, वहीं पंचतत्व में विलीन, अब मंदिर बनेगा

- पाली |
सड़क हादसे के बाद देवलोकगमन करने वाले जैन संत आचार्य पुंडरिक रत्न सुरीश्वर गुरुवार को पंचतत्व में विलीन हो गए।
विवेकानंद सर्किल के पास स्थित समुद्र विहार से गुरुवार को वैकुंठी यात्रा रवाना हुई, जो मानपुरा भाकरी स्थित श्री जीरावला पार्श्वनाथ जैन मंदिर परिसर पहुंची। यहीं अंतिम संस्कार हुआ। अब यहां मौजूदा मंदिर के सामने आचार्य पुंडरिक रत्न सुरीश्वर की स्मृति में मंदिर का निर्माण किया जाएगा। संयोग देखिए कि इसी जगह 1 जून को होने वाले ध्वजा कार्यक्रम इन्हीं संत के सान्निध्य में होना था। इससे पहले पार्थिव देह के दर्शन के लिए समुद्र विहार में रखा गया था।
गुरुवार सुबह से ही दर्शन के लिए सैकड़ों की संख्या में जैन समाज के लोग पहुंचना शुरू हो गए। देव की पेढ़ी के अध्यक्ष गौतम चंद मेहता ने बताया कि सड़क हादसे में सिर में चोट लगने से बुधवार को आचार्य सुरीश्वर का देवलोकगमन हो गया था। गुरुवार को सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर विवेकानंद सर्किल के पास स्थित समुद्र विहार से वैकुंठी निकाली गई।पूरे रास्ते में गुलाल उड़ाया गया।
वैकुंठी यात्रा समुद्र विहार से व्यास सर्कल, मस्तान बाबा, कवाड़ सर्कल, टैगोर नगर, सर्किट हाउस से होते हुए मानपुरा भाकरी श्री जीरावला पार्श्व नाथ जैन मंदिर पहुंची। जैन संत मानपुरा भाखरी स्थित श्री जीरावला पार्श्वनाथ मंदिर में 1 जून को होने वाले ध्वजा कार्यक्रम में पहली बार भाग लेने वाले थे। अंतिम संस्कार वाली जगह जैन समाज ने आचार्य का मंदिर बनाने का निर्णय लिया है। बता दें कि आचार्य पुंडरीक रत्न सूरीश्वर मूल रूप से मुंबई के रहने वाले थे। आचार्य का जन्म मुम्बई के विरार में 8 दिसम्बर 1955 में हुआ था।
बचपन से ही उनका मन धर्म-ध्यान में रहा। 28 जनवरी 1986 में उन्होंने पालिताणा गुजरात में दीक्षा ली। 26 फरवरी 2020 को उन्हें आचार्य पदवी मिली। आचार्य अभी विजय नगर अटारी में दीक्षा करवाकर नाकोड़ा में चातुर्मास के लिए विहार कर रहे थे। आचार्य 18 भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने कई प्राचीन ग्रंथों व पांडुलिपियों का संरक्षण किया। जन्म मुंबई में, दीक्षा गुजरात में ली थी क्रियाकर्म के लिए लगी लाखों की बोलियां : उगमराज सांड ने बताया कि आचार्य पुंडरिक रत्न सुरीश्वर का अंतिम संस्कार से पहले के क्रियाकर्म के लाभार्थी बनने के लिए लाखों रुपए की बोलियां बोली गईं।
समुद्र विहार में संत की पार्थिक देह को मुखाग्नि देने, कंधा देने, लोठिया, शॉल ओढने आदि की बोलियां बोली गईं। इसके बाद समुद्र विहार से वैकुंठी निकाली गई। जिसमें जैन समाज के हजारों लोग उमड़े। आचार्य को अंतिम विदाई देते हुए कई लोगों की आंखें नम हो गईं। जानबूझकर टक्कर मारने का आरोप : आचार्य के शिष्य मुनि महविवेह विजय ने घटना को लेकर शिवपुरा थाने में रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया कि वे सभी विहार करते हुए आ रहे थे। इस दौरान जाडन की तरफ से आ रहे एक मिनी ट्रक चालक ने जानबूझकर हाईवे से मिनी ट्रक को नीचे उतारा जिसकी चपेट में आचार्य पुंडरिक रत्न सुरीश्वर आ गए। हादसे के बाद मिनी ट्रक ड्राइवर तेज गति से भाग गया। रिपोर्ट में ड्राइवर को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की गई।
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