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हाइफा हीरो मेजर दलपत सिंह शेखावत

दलपत सिंह शेखावत का जन्म 26जनवरी 1892को देवली हाउस (वर्तमान सेठ मगनी राम बांगड़ मेमोरियल इंजिनियरिंग कालेज) में रावणा राजपूत परिवार में हुआ। इनके पिता हरि सिंह शेखावत तत्कालीन जोधपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर प्रताप के खास थे साथ ही विश्व प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी भी थे। दलपत सिंह की शिक्षा सर प्रताप के कुंवर नरपतसिंह के साथ इंग्लैंड में इस्टर्ब बर्न कालेज में हुई।शिक्षा प्राप्ति के पश्चात 1912ईस्वी में जोधपुर लांसर्स जिसे जोधपुर रसाला भी कहा जाता था में किंग्स कमीशन प्राप्त किया।

केशर नह निपजै,नह हीरा निपजंत।
सिर कटिया खग सामणा, मरुधर में उपजंत।।

मरुधर प्रदेश राजस्थान में वीरों की गौरवशाली परम्परा रही है।एक से बढ़कर एक वीर पुरुषों ने यहां जन्म लेकर अप्रतिम शौर्य का प्रदर्शन करते हुए इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया। ऐसे ही एक वीर पुरुष हुए -मेजर दलपत सिंह शेखावत जिन्हें हाइफा हीरो के नाम से भी जाना जाता है। किसी ने ठीक ही कहा है –

मंच मौत कायर सुवा,लाभ न हाण लगार।
हुवौ अमर हरिसिंह और,जुध दलपत जुंझार।।

1914में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया।उस समय भारत पर ब्रिटेन का राज था। ब्रिटेन इस विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से लड रहा था। ब्रिटेन की ओर से लडने जोधपुर रसाला भी फ्रांस गया। वहां दलपत सिंह शेखावत ने अप्रतिम शौर्य का प्रदर्शन कर अपने को तलवार का धनी सिद्ध किया तथा विक्टोरिया क्रास सम्मान प्राप्त किया।14जुलाई 1918को जोधपुर रसाला मिस्र गया। जोधपुर रसाला के साथ मैसूर लांसर्स व हैदराबाद लांसर्स भी था। इन्हें सर प्रताप लीड कर रहे थे।सर प्रताप को दलपत सिंह शेखावत की वीरता व शौर्य पर विश्वास था।वहां वर्तमान इजरायल के हाइफा नगर पर तुर्की आधिपत्य था उसे जर्मनी व इटली का सहयोग प्राप्त था।

इसे जीते बिना भूमध्य सागर के तटीय प्रदेशों की रक्षा संभव नहीं थी। ब्रिटेन ने लगातार हमले किए लेकिन सफल नहीं हो रहा था। ब्रिटिश सैन्य अधिकारियो की बैठक में इस पर चर्चा हो रही थी।सर प्रताप भी इस बैठक में उपस्थित थे। चर्चा में भाग लेते हुए सर प्रताप ने कहा -“कैसा भी विकट मोर्चा हो, हमारे सैनिक घोड़ों के बल पर जीत सकते हैं।”ब्रिटिश सैन्य अधिकारी में आशा की लहर दौड़ गई उन्होंने तुरंत इसकी जिम्मेदारी सर प्रताप को दे दी।

सर प्रताप ने जोधपुर लांसर्स, मैसूर लांसर्स व हैदराबाद लांसर्स के सैन्य अधिकारियों से मंत्रणा कर हाइफा विजय की रणनीति तय की।तय हुआ मेजर दलपत सिंह शेखावत अपने आधे सैनिकों को शस्त्रों व घोड़ों सहित जार्डन नदी में उतार कर जार्डन नदी को पार कर शत्रु को घेरेंगे। स्वयं दलपत सिंह पुल पर होते हुए कंटीली बाड़ को पार कर शत्रु दल पर सीधा आक्रमण करेंगे।

23 सितंबर 1918 को प्रात 4 बजे मेजर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में पूरे जोश के साथ आक्रमण कर दिया गया। आधे सैनिकों ने शस्त्र सहित घोड़े नदी में उतार दिए और नदी को पार कर शत्रु सेना को पीछे से घेर लिया। दलपत सिंह पूल पर होते हुए कंटीली तारबंदी को लांघकर शत्रु सेना से भिड गए। तोपों की गर्जना से युद्ध विकराल रुप लेने लगा। मात्र 26वर्ष के युवा मेजर दलपत सिंह शेखावत ने असाधारण शौर्य का प्रदर्शन किया उनका शौर्य और साहस देखते ही बनता था।

मारवाड़ी घुड़सवार वीरों ने दुश्मनों की तोपों के मुंह मोड़ दिए , अनेकानेक तुर्क सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। शत्रु सेना में भगदड़ मच गई।मेजर दलपत सिंह शेखावत के सीने में चार कारतूस लगे लेकिन वे घबराएं नहीं और सैनिकों का हौंसला बुलंद करते रहे। अंततः 700सैनिको सहित उनके नायक को कैद कर हाइफा पर जीत का झंडा फहरा दिया। मेजर दलपत सिंह के कुल 11 कारतूस लग चुके थे। वे बुरी तरह घायल हो चुके थे अतः वीरगति को प्राप्त हो गए।
वीर विलास बणाय,पिंड साहस दलपत रौ।
वीरां दीध बताय,श्याम धरम संसार में।।

सर प्रताप के पास जब यह समाचार पहुंचा तो उनके मुंह से निकल पड़ा -दलपत ने जोधपुर का नाम इतिहास में अंकित कर दिया। उसने अपना वादा निभाया।
मेजर दलपत सिंह शेखावत की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए जोधपुर में एक विशाल आयोजन कर दलपत मेमोरियल भवन का निर्माण कराया गया।

उन्हें मरणोपरांत हीरों आफ हाइफा अलंकरण से विभूषित किया गया। शेखावत की पंच धातु से निर्मित स्टैच्यू लंदन की रायल गैलेरी में स्थापित की गई। भारत के तत्कालीन वायसराय ने इनका चित्र लाल किले में अनावरण किया। महाराजा उम्मेद सिंह ने इनकी एक चांदी की प्रतिमा बनाकर जोधपुर लांसर्स को सादर भेंट की जो वर्तमान में 61वी कैवेलरी जयपुर में गौरव को बढ़ा रही है।लंदन के शिल्पकार लियोनार्ड ने 1922में तीन वीरो की एक संयुक्त कलात्मक मूर्ति बनाई जिसे त्रिमूर्ति कहा जाता है, इसमें एक मूर्ति दलपत सिंह शेखावत की है, दिल्ली, जयपुर , बैंगलुरू में स्थापित की गई।

मेजर दलपत सिंह के परिजनों को पाली जिले के सोमेसर रेलवे स्टेशन के पास स्थित देवली पाबूजी की जागीरी दी जो 1946तक उनके परिवार के पास रही। ‌
सचमुच दलपत सिंह शेखावत जैसे वीरों पर समूचे भारत को गर्व है,आज भी उनकी शौर्य गाथा इजरायल व ब्रिटेन में पढ़ाई जाती है। हमें भी इनके जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्र के लिए जीवन समर्पित करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
विजय सिंह माली
प्रधानाचार्य
श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी जिला पाली राजस्थान 306702
मोबाइल 9829285914
vsmali1976@gmail.com

2 Comments

  1. Thank you for the sensible critique. Me and my neighbor were just preparing to do a little research on this. We got a grab a book from our area library but I think I learned more from this post. I am very glad to see such fantastic information being shared freely out there.

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