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भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में स्वामी दयानंद सरस्वती की महत्वपूर्ण भूमिका – माली

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KHUSHAL LUNIYA
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भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में स्वामी दयानंद सरस्वती की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके द्वारा प्रतिपादित स्वराज, स्वधर्म, स्वदेशी तथा स्वभाषा विषयक विचारों ने भारतीयों को गौरवशाली अतीत व राष्ट्रवाद का भाव जागृत किया। सत्यार्थ प्रकाश ने जन जन को राष्ट्रवाद से आप्लावित कर दिया। श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला लाजपत राय जैसे आर्य समाज के सदस्यों ने स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उक्त उद्गार स्थानीय श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य विजय सिंह माली ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान द्वारा मेड़ता रोड में आयोजित भारत के पुनर्जागरण में आर्य समाज का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक अवदान विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किए।

माली ने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में स्वामी दयानंद सरस्वती की भूमिका विषयक पत्र वाचन करते हुए कहा कि आर्यसमाज द्वारा संचालित गुरुकुल व दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल कालेज राष्ट्रीयता की पाठशाला बन गए जिन्होंने युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। सरस्वती ने अपने अनुयायियों को स्वदेशी के लिए सदैव प्रेरित किया। संगोष्ठी में अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा स्मारिका का भी विमोचन किया गया।

इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष अन्ना राम शर्मा, संगठन मंत्री विपिन चन्द्र पाठक, प्रांत अध्यक्ष अखिलानंद पाठक, प्रांत मीडिया प्रमुख पवन पांडेय, संगोष्ठी संयोजक उम्मेद सिंह भाटी का सानिध्य भी मिला। मंच संचालन प्रांत महामंत्री लालाराम प्रजापत ने किया। इस अवसर पर लीलाधर सोनी, विष्णु दत्त शर्मा, मदनलाल प्रजापतने व्यवस्थाएं संभाली।

उल्लेखनीय है कि स्वामी दयानंद सरस्वती के जन्म के 200वर्ष पूरे होने पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में दो तकनीकी सत्रों में चयनित 21 विद्तजनों ने पत्र वाचन किया। पाली जिले से राघव प्रसाद पाण्डेय, दिनेश कुमार मीना, भंवर सिंह राठौड़, विनोद राजपुरोहित व प्रहलाद भाटी समेत विभिन्न जिलों के एक सौ से अधिक विद्वतजनों ने भाग लिया।

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