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मातृभाषा एक ऐसा महत्वपूर्ण संसाधन है जो हमारी सोच, विचार और व्यक्तित्व को आकार देता है। इसे मानवीय दृष्टिकोण से देखने पर, मातृभाषा न केवल एक भाषाई साधन है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का मूल अंग है। इसलिए, मातृभाषा दिवस के इस मौके पर, हमें इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
मातृभाषा न केवल एक भाषा होती है, बल्कि यह हमारी भावनाओं, विचारों, और विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है। यह हमें हमारी मूल्यों और संस्कृति का गर्व महसूस कराती है और हमें अपनी पहचान की एक मजबूत नींव प्रदान करती है। इसके अलावा, मातृभाषा हमें अपनी भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त करने का एक माध्यम भी प्रदान करती है।
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मातृभाषा के महत्व को समझने के लिए, हमें सिर्फ भाषा की तकनीकी और व्याकरणिक पहलुओं पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए। बल्कि हमें इसके साथ हमारे समाज, संस्कृति, और विचारधारा के रूप में इसका महत्व समझना चाहिए। मातृभाषा हमें अपने समाज में संघर्षों, समस्याओं, और समाधानों को समझने में मदद करती है। यह हमें अपने समुदाय के साथ संबंध बनाए रखने और उनके साथ संवाद करने में भी सक्षम बनाती है।
इस दिन को मनाने का महत्व यहाँ तक है कि यह हमें अपनी मातृभाषा के महत्व को समझने और समर्थन करने का एक अवसर प्रदान करता है। हमें अपनी मातृभाषा के प्रति आदर और समर्थन का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम अपने समाज में सामूहिक और व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित कर सकें। मातृभाषा दिवस को मनाने का उद्देश्य हमें यह सिखाता है कि हमें अपने भाषाओं का महत्व समझना चाहिए और उन्हें समृद्धि और समानता के साथ स्वीकार करना चाहिए। देखे की भारत देश मातृभाषा के बारे में किन महापुरषों ने क्या-क्या कहा था.
“मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही आवश्यक है जितना शिशु के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध।”
“मातृभाषा बच्चे को अपने पूर्वजों के विचारों, भावों तथा महत्वाकांक्षाओं की समृद्ध थाति से परिचित कराने का सर्वोत्तम साधन है।”
“मातृभाषा के बिना न आनंद मिलता है न विस्तार होता है और न ही हमारी योग्यताएं प्रफुल्लित होती है।”
“मातृभाषा मनुष्य के हृदय की धड़कन की भाषा है।”
“केवल एक ही भाषा में हमारे भावों की स्पषटतम व्यजंना हो सकती है,केवल एक ही भाषा के सूक्ष्म संकेतों को हम सहज और निश्चित रुप से ग्रहण कर सकते हैं और यह भाषा वह होती है जिसे हम अपनी माता के दूध के साथ सीखते है,वही मातृभाषा है।”
“मातृभाषा की शिक्षा से पूर्व विदेशी भाषा की शिक्षा प्रदान करना उतना ही विवेक रहित है जितना बच्चों को चलने से पूर्व चढ़ना सिखाना।”
उपर्युक्त कथनों से मातृभाषा का महत्व स्पष्ट होता है। मातृभाषा यानी मां की भाषा, मातृभूमि की भाषा। जन्म से हम जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, वहीं हमारी मातृभाषा है, सभी संस्कार व व्यवहार इसी के द्वारा हम पाते हैं। मातृभाषा संस्कृति व संस्कारों की भाषा है।यह राष्ट्रीयता से जोड़ती है, देशप्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। मातृभाषा हमारे विकास की आधारशिला है, हमारी शिक्षा का आधार भी है।
भारतेंदु जी ने ठीक ही कहा –
निज भाषा उन्नति अहऐ,सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के,मिटत न हिय को सूल।।
मातृभाषा में शिक्षण शारीरिक, मानसिक, भावात्मक तथा शैक्षिक विकास में सहायक है। यह अभिव्यक्ति का माध्यम है, सामाजिक विकास में उपयोगी है। यह ज्ञानार्जन का सशक्त माध्यम है, लोकतांत्रिक विकास में सहायक है, सांस्कृतिक चेतना में सहायक है, नागरिकता और सृजनात्मकता के विकास में सहायक है, नैतिक मूल्यों एवं व्यावहारिक कार्यों में सहायक है, सचमुच मातृभाषा में शिक्षण व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक है।
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महात्मा गांधी के शब्दों में -“बालक अपना पहला पाठ अपनी माता से ही पढता है, इसलिए उसके मानसिक विकास के लिए उसके उपर मातृभाषा के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा लादना मैं मातृभाषा के विरुद्ध पाप समझता हूं।”
17 नवंबर 1999 को यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की सहमति दी। प्रतिवर्ष 21फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।21फरवरी 1952को ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपनी मातृभाषा बांग्ला के लिए बलिदान किया। मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे उद्देश्य है कि विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। प्रतिवर्ष अलग थीम पर मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।
महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा -“जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा के बिना अन्य भाषा के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करते हैं,वह आत्महत्या करते हैं”
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यदि हमें विश्व गुरु के पद पर पुनः प्रतिष्ठित होना है तो-
- मातृभाषा को समुचित सम्मान दे।
- अपनी मातृभाषा पर गर्व करे।
- मातृभाषा को व्यापक रुप से व्यवहार में लाए।
- मातृभाषा के संरक्षण संवर्धन के प्रयास करें।
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