हर व्यक्ति का जीवन होता है, महान व्यक्ति का जीवन प्रेरणादायक अनुकरणीय और शिक्षा प्रद होता है।ऐसे ही महान व्यक्ति थे स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जिनका बलिदान दिवस हर देशवासी विशेष कर नव युवकों के लिए इसलिए आदर्श और प्रेरणादायक है।
मुंशीराम का प्रारम्भिक जीवन आजकल के कुछ दुर्व्यसन ग्रस्त नवयुवकों की तरह दुर्व्यसन से ओतप्रोत था। उनमें शराब और मांस का सेवन सर्वोपरि था। कल्याण मार्ग के पथिक में अपने आत्म कथ्य में वे लिखते हैं । शराब पीकर घर आना और आते ही उल्टी करना रोज की दिनचर्या बन चुकी थी ।
एक दिन शराब पीकर घर आया नशा तो चढ़ा ही था उल्टी से पुरे कपडे खराब हो गये जो एक वीभत्स दृश्य उपस्थित कर रहे थे, ऐसे दृश्य को देखकर भी शिवरानी देवी को कोई क्रोध या गुच्छा नहीं आया और न ही उसने किसी प्रकार की घृणा व्यक्त की। देवी ने अन्दर ले जाकर मेरे खराब वस्त्र उतारकर पलंग पर लिटाकर चादर ओढ़ा दी। रात एक बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि शिव रानी देवी मेरा पैर दबा रही है। मैंने पानी मागा देवी ने आश्रय देकर मुझे उठाया। गरम दूध अंगीठी से उतारकर उसमें मिश्री मिलाकर मेरे मुंह को लगा दिया। दूध पीने पर मुझे होश आया। तब मैंने देवी से पूछा, ‘तुम बराबर जागती रही, भोजन तक नहीं किया।’ शिवरानी देवी ने कहां’आपके भोजन किए बिना मैं कैसे खाती। उस रात हम दोनों बिना भोजन किए भुखे ही सो गए।
ऐसा सतीत्व धर्म का पालन भारतीय नारियों में ही मिल सकता है। मुंशीराम लिखते है इस घटना ने मेरे जीवन को बदल दिया। जहां ऐसा समर्पण भाव हो, वहां जीवन तो बदलेगा ही। एक स्त्री की उदारता, प्रेम, समर्पण, निष्ठा, अनुराग, व्यक्ति को स्वर्गिक सुख की प्राप्ति कराता है।
दुसरी घटना वे इस प्रकार लिखते हैं
मै शराब का आदी हो चुका था। एक पारसी शराब विक्रेता का बिल बढ़ता जा रहा था। जो लगभग तीन सौ रुपए का बिल चढ़ गया था। मेरे को चिन्ता हुई। एक दिन देवी ने भोजन कराते समय चिन्ता का कारण पूछा। अब आपस में कोई बात छिपी न रह सकती थी। मैंने शराब विक्रेता के बिल की बात बताई। यह सुनते ही भोजन करने के पहले देवी ने अपने हाथ के सोने के कड़े उतार कर मेरे हाथ में रख दिये। ‘मैने शिवरानी देवी से कहां यह कैसे हो सकता है? तुम्हें आभूषित करने के स्थान पर आभुषणों से रहित करने का पाप कैसे कर लूं। देवी ने दूसरी जोड़ी दिखाकर मुझसे कहा- ‘एक जोड़ी पिता ने और दूसरी श्वसुर जी ने दी थी। इनमें से एक जोड़ी व्यर्थ पड़ी है यह मेरा सामान है। इसे आपको लेन में क्या संकोच है।आपकी चिन्ता दूर करने का यह महंगा सौदा तो नहीं है। मैंने कडे बेचकर शराब विक्रेता का बिल चुकाया और शेष रुपए देवी की संदुक में रख दिए। मुंशीराम जी आगे लिखते हैं इस घटना ने मेरे मन मस्तिष्क पर जबरदस्त प्रभाव डाला मैंने मन में पक्का निश्चय कर लिया कि अब शराब नहीं पियूगा और जब कमाने लग जाऊंगा तब व्यय किए हुए धन को फिर से आभूषणों में मिला दूंगा। वास्तव में शिवरानी देवी को उनके माता-पिता ने ऐसी शिक्षा दी थी कि नित्य पति की सेवा करे।
यह घटना है तो छोटी किन्तु बहुत बड़ी सीख देती है। एक गिरे हुए मनुष्य को महात्मा और स्वामी तक पहुंचा दिया। ऐसी ही नारियों के लिए कहा गया है-
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।’
अर्थात् जहां नारियों का आदर-सत्कार होता है वहां देवता रमण करते हैं। आज वैवाहिक जीवन में तनाव ही तनाव है। न पत्नी से पति खुश, न पति से पत्नी खुश। इसका मुख्य कारण है घर में संस्कार युक्त शिक्षा का अभाव। जब बच्चों को कोई अच्छी बात बताएगा नहीं तो संस्कार आएगा कहां से ? गृहस्थ-जीवन में यदि संस्कार नहीं है तो गृहस्थ जीवन नारकीय स्थिति में बदल जाता है।
शिवरानी देवी से आजकल की नारियां बहुत कुछ सीख ले सकती हैं। वेद में ऐसी नारियों को विविध उपमाओं से उपमित किया गया है।