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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम मंदिर का हिस्सा होगा 5500 किलो का ध्वजदंड

विश्वकर्मा शिल्पकार विविध पृष्ठभूमियों से आते हैं, प्रत्येक पीढ़ी से चले आ रहे अद्वितीय शिल्प में माहिर हैं। लकड़ी पर नक्काशी, धातु का काम, मिट्टी के बर्तन बनाना और बुनाई ऐसे असंख्य कौशल हैं जिनमें वे महारत हासिल करते हैं। तकनीकों और शैलियों की समृद्ध टेपेस्ट्री के साथ, ये शिल्पकार सौंदर्य सौंदर्य और कार्यात्मक उत्कृष्टता दोनों की वस्तुएं बनाते हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण का हिस्सा होगा 5500 का ध्वजदंड जो शुद्ध पीतल से बना हुआ होगा।

राष्ट्रीय अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के महासचिव कालूराम लोहार विश्वकर्मा ने बताया कि भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण में उपयोग होने वाले ध्वजदंड बनाने का कार्य विश्वकर्मा समाज के अहमदाबाद निवासी भरत भाई मेवाडा की कंपनी श्री अंबिका इंजीनियरिंग में हो रहा है।

महासचिव कालूराम लोहार ने कहा कि – यह बड़े ही सौभाग्य की बात है की श्रीराम मंदिर निर्माण ट्रस्ट की ओर से ध्वज निर्माण का कार्य समाज के भरत भाई मेवाडा को मिला। इस कार्य की संपन्नता पर पूरा समाज गौरवान्वित महसूस करेगा।

मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम जन्म भूमि में नव निर्माण राम मंदिर के लिए अहमदाबाद में भरत भाई की कम्पनी द्वारा बनाए जा रहे विशाल ध्वजदण्ड के राष्ट्रीय अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा पदाधिकारियों सदस्यों ने दर्शन किये।

श्रीराम मंदिर

इस दौरान अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के राष्ट्रीय महासचिव कालूराम लोहार, महेशभाई, पोपटलाल गोहिल, ट्रस्टी देवतांखीदादा धाम मजेवड़ी राकेश पांचाल, विश्वकर्मा रथ यात्रा के संयोजक नरपतलाल राजपुरोहित करड़ा, गजेंद्रसिंह वमल, सुरेश कुमार लुहार मुड़तरा के साथ अयोध्या में राम मंदिर में लगने वाले ध्वज दण्ड के दर्शन किए। अन्य समाज सेवी व संस्था के अग्रणी भी मौजूद रहे।

विश्वकर्मा शिल्पकारों की समय-सम्मानित विरासत

भारत के हृदयस्थलों में, कुशल कारीगर जिन्हें विश्वकर्मा शिल्पकार के नाम से जाना जाता है, सदियों से चली आ रही एक प्राचीन परंपरा के संरक्षक रहे हैं। दिव्य वास्तुकार और शिल्पकार विश्वकर्मा के नाम पर रखे गए, इन कारीगरों को उनकी अद्वितीय शिल्प कौशल और कलात्मक कौशल के लिए सम्मानित किया जाता है।

लकड़ी पर नक्काशी, विश्वकर्मा शिल्प कौशल की एक पहचान, जटिल डिजाइनों को प्रकट करती है जो सांस्कृतिक विरासत की कहानियां बताती हैं। कारीगरों ने अलंकृत फर्नीचर से लेकर धार्मिक मूर्तियों तक, लकड़ी की कलाकृतियों को सावधानीपूर्वक उकेरा है, जो परंपरा और आध्यात्मिकता दोनों के साथ गहरा संबंध प्रदर्शित करता है।

धातुकर्म एक और क्षेत्र है जहां पर विश्वकर्मा कारीगर चमकते हैं। पैतृक ज्ञान से प्राप्त तकनीकों का उपयोग करते हुए, वे नाजुक गहनों से लेकर मजबूत उपकरणों तक कला और उपयोगिता के उत्कृष्ट टुकड़े तैयार करते हैं। समकालीन डिजाइन संवेदनाओं के साथ पारंपरिक तरीकों का मेल उनकी अनुकूलनशीलता और नवीनता का प्रमाण है।

मिट्टी के बर्तन भी, विश्वकर्मा कारीगरों के हाथों में एक कला के रूप में उभरे हैं। उनके कुशल हाथ मिट्टी को ऐसे बर्तनों में ढालते हैं जिनमें उपयोगिता और सुंदरता दोनों होती है। उपयोगितावादी बर्तनों से लेकर जटिल रूप से चित्रित सजावटी टुकड़ों तक, उनकी रचनाएँ कार्यक्षमता और सौंदर्यशास्त्र के सहज मिश्रण को दर्शाती हैं।

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बुनाई, एक सदियों पुराना शिल्प है, जिसे विश्वकर्मा कारीगरों के कुशल हाथों से एक दृश्य सिम्फनी में बदल दिया गया है। जटिल पैटर्न और जीवंत रंग मिलकर ऐसे वस्त्र बनाते हैं जो सांस्कृतिक विविधता और कलात्मक प्रतिभा की कहानियां सुनाते हैं। मूर्त उत्पादों से परे, विश्वकर्मा कारीगर अपने काम से आध्यात्मिक जुड़ाव रखते हैं। इस विश्वास में निहित कि उनकी शिल्प कौशल पूजा का एक रूप है, ये कारीगर प्रत्येक रचना को भक्ति और श्रद्धा से भर देते हैं।

आधुनिकीकरण के सामने, विश्वकर्मा कारीगर अपनी प्राचीन कलात्मकता के सार को संरक्षित करते हुए अपने कौशल को समकालीन स्वाद के अनुसार ढालते रहते हैं। एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक के रूप में, ये कारीगर भारतीय शिल्प कौशल की कथा को आकार देना जारी रखते हैं, और अपनी कालजयी कृतियों से दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ते हैं।

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विश्वकर्मा के लोग परंपरागत रूप से कुशल कारीगर होते है। विश्वकर्मा समाज के लोगो ने मुगल, अंग्रेजो, रजवाड़ों, देश की आजादी से लेकर अब तक हमेशा अपनी उपयोगिता को साबित किया है. कलयुग में अयोध्या में विराजमान होने वाले पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर पर लहराने वाले ध्वज के दंड का कार्य भी विश्वकर्मा समाज के लोग बखूबी कर रहे है. आदिकाल से भगवान विश्वकर्मा ने द्वारिका की नगरी, लंका में सोने का महल पुष्प विमान जैसे अनेक देवी देवताओ ऋर्षी मुनियों के मंदिर का निर्माण किये है इसलिए विश्वकर्मा भगवान को युगो युगो तक याद किया जाता रहा है। यह जानकारी कालूराम लोहार विश्वकर्मा राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा ने दी.

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