बंगाल की सियासी जमीन पर सस्पेंस और उबाल: राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा, उठी राष्ट्रपति शासन की मांग

- बाली से विशेष रिपोर्ट
पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है। कानून-व्यवस्था की गिरती स्थिति और बढ़ती हिंसा को लेकर स्थानीय नेताओं और नागरिकों में आक्रोश गहराता जा रहा है। बाली (पश्चिम बंगाल) में एक बेहद महत्वपूर्ण और सस्पेंस से भरपूर घटनाक्रम में, क्षेत्र के एसडीएम दिनेश विन्श्रोई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
क्या है ज्ञापन में?
ज्ञापन में पश्चिम बंगाल की स्थिति को गंभीर और विस्फोटक बताया गया है। आरोप है कि ममता बनर्जी सरकार वोट बैंक की राजनीति करते हुए राज्य की संघीय संरचना को खतरे में डाल रही है। इसमें विशेष रूप से वक्फ कानून के दुरुपयोग और हिन्दू समाज पर हो रहे कथित अत्याचार का जिक्र किया गया है।
सबसे चौंकाने वाला आरोप यह है कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को खुली छूट दी जा रही है, जिससे राज्य में असंतुलन और अराजकता बढ़ रही है।
ज्ञापन में रखी गईं चार प्रमुख मांगें:
- 1. राज्य में तुरंत राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए।
- 2. हिंसा की जांच NIA (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) से कराई जाए।
- 3. कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्रीय बलों को सौंपी जाए।
- 4. बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकाला जाए।
इसके अलावा, बांग्लादेश सीमा पर 450 किलोमीटर लंबी बाड़ लगाने की मांग भी ज्ञापन में शामिल की गई है, जिससे अवैध घुसपैठ पर रोक लगाई जा सके।
कौन-कौन रहा शामिल?
इस मौके पर जिला मंत्री रतनपुरी श्री सेला ने नेतृत्व किया। उनके साथ जिला अध्यक्ष वाना राम चौधरी, उपाध्यक्ष लखमाराम परमार, समरसता प्रमुख थानसिंह राव, प्रखंड अध्यक्ष कांतिलाल सुथार, मंत्री लक्ष्मण पालीवाल, नगर अध्यक्ष सुरेश कंसारा, नंदू भाई कलाल, सुजाराम चौधरी सहित कई पदाधिकारी और बड़ी संख्या में आम लोग मौजूद थे।
क्या है सस्पेंस?
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा सस्पेंस यह है कि क्या केंद्र सरकार इस ज्ञापन पर कोई ठोस कदम उठाएगी? क्या बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग को गंभीरता से लिया जाएगा?
इसके साथ ही सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या NIA जैसी शीर्ष एजेंसी इस मुद्दे में दखल देगी? और अगर ऐसा हुआ, तो यह बंगाल की राजनीति को पूरी तरह बदल सकता है।
राजनीतिक भूचाल के संकेत?
बंगाल की स्थिति पहले से ही अशांत है। ऐसे में इस ज्ञापन ने माहौल को और भी गर्मा दिया है। यदि केंद्रीय स्तर पर इस ज्ञापन की मांगों पर विचार किया जाता है, तो राज्य में एक राजनीतिक भूचाल आ सकता है।
बाली से उठी ये आवाज़ अब सिर्फ एक ज्ञापन तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि इसने एक बड़ी बहस की नींव रख दी है – क्या बंगाल सुरक्षित है? क्या लोकतंत्र खतरे में है? क्या घुसपैठ एक सुनियोजित साजिश है?
इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में सामने आ सकते हैं, लेकिन फिलहाल बंगाल की धरती पर सस्पेंस गहराता जा रहा है।
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