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स्वतंत्रता दिवस पर विशेष, स्वतंत्रता आंदोलन में सादड़ी की रही है महत्वपूर्ण भूमिका

गोड़वाड़ की हदयस्थली, फूलों की नगरी, मघई और सूकड़ी नदी के दोआब पर बसी सादड़ी की स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गोड़वाड़ का प्रमुख व्यापारिक केंद्र होने व यहां के जैन बंधुओं के राजस्थान से बाहर व्यवसाय होने से आजादी की बयार यहां के लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ती रही।

Special on Independence Day, Sadri has played an important role in the freedom movement

सादड़ी के सपूत फूलचंद बाफना गोडवाड के स्वतंत्रता सेनानियों के सिरमौर थे। मारवाड़ लोकपरिषद के प्रधानमंत्री के रुप में समूचे गोडवाड मारवाड़ में लोकपरिषद का काम सर्व व्यापी,सर्व स्पर्शी बना दिया। सादड़ी स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन गया। यहां के स्वतंत्रता सेनानी गोडवाड के गांवों में जाकर आजादी की अलख जगाने लगे।

जयनारायण व्यास, मथुरा दास माथुर, भंवरलाल सर्राफ, रणछोड़ दास गट्टाणी का इनसे संपर्क संवाद सतत् जारी रहा।कई बार जेल गए बाफना ने राजस्थान के एकीकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हीरालाल शास्त्री मंत्री मंडल में स्वायत्त शासन मंत्री भी बने। इनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को देखते हुए इन्हें गोडवाड का गांधी भी कहा जाता है।

सादड़ी निवासी पुखराज कोठारी ने 1932 में सादडी नवयुवक मण्डल की स्थापना की। महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यों से प्रभावित होकर ये बाफना जी के सहयोगी बन गए। गोड़वाड़ में जनजागृति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनोप चंद पुनमिया ने सादड़ी लोकपरिषद के अध्यक्ष के रुप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सादड़ी के मूल निवासी रामचंद्र नंदवाना जिनके पिता जी मोती लाल जी मेवाड रियासत में अधिकारी थे, ने एकी आंदोलन के जनक मोतीलाल तेजावत से प्रेरणा लेकर स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया तथा जेल गए।हमें स्मरण रखना चाहिए कि सादड़ी के व्यापारियों ने न केवल स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक सहयोग प्रदान किया बल्कि अपने ग्राहकों के माध्यम से भी राष्ट्रीय चेतना गांव गांव तक पहुंचाई। भारतमाता की जय, महात्मा गांधी की जय, वंदेमातरम का उद्घोष यहां के व्यापारियों ने ग्राहकों के माध्यम से गांव ढाणी तक पहचाया। लाग बाग, बैठ बेगार ,जागीरी जुल्मो के विरोध के लिए प्रेरित किया।

स्वतंत्रता आंदोलन से सादड़ी के विद्यार्थी भी अछूते नहीं रहे।उन दिनों गांधी टोपी पहनना अपराध के समान था। सादड़ी विद्यालय में अध्ययनरत बंशी लाल जैसानी , पुखराज जी गांधी टोपी पहन कर विद्यालय गए। गांधी टोपी पहनने के कारण उनकी प्रार्थना सभा में पिटाई हुई व विद्यालय से निकाल दिया गया।1942 मे तत्कालीन शिक्षा निदेशक ए पी काक्स के सादड़ी विद्यालय आगमन पर मोहनलाल जुहार मल पुनमिया सफेद गांधी टोपी पहनकर विद्यालय गए व तत्कालीन सत्ता को चुनौती दी। एडवोकेट गणेश लोहार ने भारत छोड़ो आंदोलन के उत्तरार्द्ध में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।

धीरजमल बच्छावत, केसरी मल तलेसरा, नगराज पुनमिया, नंद किशोर बोहरा, अमृत लाल सोनी, बस्ती मल बच्छावत, मोहनलाल रातडिया, दानमल पुनमिया, चांदमल पुनमिया, जुगराज पुनमिया, कपूरचंद पुनमिया आदि ने स्वतंत्रता आंदोलन को सींचा।इन सबके प्रयासो से हमें 15अगस्त 1947को आजादी मिली। आवश्यकता इस बात की है कि हम आजादी के आंदोलन के इन विस्मृत सेनानियों की जानकारी एकत्रित कर इनके संघर्ष की कहानी जन जन तक पहुंचाएं ताकि आम आदमी को आजादी की कीमत का अहसास हो।

स्वतंत्रता दिवस पर सभी ज्ञात अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को सादर नमन।

लेखक: विजय सिंह माली 
प्रधानाचार्य श्रीधनराज बदामिया
राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक 
विद्यालय सादड़ी (पाली)

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