भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख
जय जवान जय किसान का प्रेरक संदेश देने वाले भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2अक्टूबर 1904को मुगल सराय में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक शारदा प्रसाद श्रीवास्तव की धर्मपत्नी रामदुलारी की कोख से हुआ। घर के सभी सदस्य प्यार से नन्हा कहकर बुलाते थे।
18 माह की उम्र में लाल बहादुर शास्त्री के पिता की मृत्यु हो गई। नाना हज़ारी लाल ने परवरिश की। उनकी मृत्यु पर मौसा रघुनाथ प्रसाद ने सहयोग दिया। ननिहाल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर हरिश्चंद्र हाई स्कूल से विद्यालयी शिक्षा पूरी की। लाल बहादुर शास्त्री कई मील की दूरी नंगे पांव से तय कर विद्यालय जाते। तत्पश्चात काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। 1928 में इनका विवाह मिर्जा पुर निवासी गणेश प्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। 16 वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में भाग लिया।
लाल बहादुर शास्त्री का आजादी की लड़ाई में योगदान
लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत सेवक संघ से जुड़कर देश सेवा का व्रत लिया और राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। गांधी जी से प्रेरित होकर सादगी को अपनाया। 1921 के असहयोग आंदोलन,1930 के दांडी मार्च में भाग लेने के कारण लंबे समय तक जेल रहे।1937 में विधानसभा के लिए चुने गए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इलाहाबाद में भूमिगत रहकर आंदोलन का नेतृत्व किया। 19 अगस्त 1942 को गिरफ्तार हुए।
देश की आजादी के बाद पुरुषोत्तम दास टंडन व पंडित गोविंद वल्लभ पंत का मार्गदर्शन इन्हें मिला। 1951 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव बने। पंडित जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल में रेल, परिवहन, संचार, वाणिज्य, उद्योग व गृहमंत्री भी रहे। रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेलमंत्री से इस्तीफा देकर आदर्श प्रस्तुत किया। 1952,1957 व 1962 के चुनावों में सांगठनिक प्रतिभा का परिचय दिया। राजनीति में उच्चतम मूल्यों के पालन का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले शास्त्री जी के मन में अनुचित लाभ उठाने का कभी विचार नहीं आया।
उनका मानना था कि मेहनत प्रार्थना करने के समान है। देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने की बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा।
1961 में नेहरु जी ने इन्हें गृहमंत्री बनाया। भारत चीन युद्ध के दौरान बिना विभाग के मंत्री के रुप में नेहरू जी को सहयोग दिया। नेहरु जी की मृत्यु के बाद 9 जून 1964को भारत के प्रधानमंत्री बने। उस समय भारत खाद्यान्न संकट से गुजर रहा था। भारत को अमेरिका से गेहूं आयात करना पड़ता था । शास्त्रीजी ने खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनने के लिए भारत में ही खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हरित क्रांति की नींव रखी जिससे खाद्य उत्पादन में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई। शास्त्रीजी किसान का महत्व जानते थे अतः उन्होंने उनके उत्थान के लिए किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाने की पहल करते हुए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा दी। कृषि मूल्य आयोग का गठन किया। भारतीय खाद्य निगम का गठन किया। मेक्सिको से गेहूं बीज के आयात को मंजूरी दी , सिंचाई सुविधा हेतु नहरें बनाई।
दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए लाल बहादुर शास्त्री के विशेष कार्य
इसी प्रकार दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए आणंद की यात्रा कर वहां के अनुभवों के आधार पर श्वेत क्रांति का सूत्रपात किया। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड का गठन किया। डाक्टर कुरियन के नेतृत्व में अमूल ब्रांड को लोकप्रिय बनाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि आने वाले वर्षौ में आपरेशन फ्लड चलाया जा सका।
पाक के प्रति युद्व स्थिति में लाल बहादुर शास्त्री ने सैनिको का नेतृत्व किया
पड़ौसी पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमले का दुस्साहस किया। भारत पाक युद्ध के दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी ने अद्भुत नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। जय जवान जय किसान का नारा देकर जवानों और किसानों को प्रेरित किया। इनके नेतृत्व में सारा देश एकजुट हो गया। इन्होंने सेना को सीमा पार करने व आगे बढ़ने का आदेश दिया। भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई और तिरंगा फहराया। इसी समय सीमा सुरक्षा बल की स्थापना की गई। भारत के आक्रामक शौर्य प्रदर्शन से पाकिस्तान की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसने अमेरिका के माध्यम से भारत को दवाब में लाने की कोशिश की। शास्त्री जी ने अमेरिका की धमकी का प्रत्युत्तर दिया -“गेंहू बंद करना है तो कर दे ,मैं इसकी परवाह नहीं करता।”
लाल बहादुर शास्त्री के किसानों के प्रति कार्य
लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों में जोश भरने के लिए स्वयं हल चलाया और एक सप्ताह में एक दिन एक बार व्रत रखने का देशवासियों से आह्वान किया। इसकी शुरुआत अपने घर से की, करोड़ों देशवासियों ने इसका पालन किया। अंततः विश्व समुदाय के अनुरोध पर शास्त्री जी ताशकंद समझौते हेतु उज़्बेकिस्तान के ताशकंद गए जहां पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ 11 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस रात्रि को ही उनकी ताशकंद में मृत्यु हो गई।
1966 में इन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। राजनीति में रहकर आदर्श प्रस्तुत करने वाले ईमानदार सरल व्यक्तित्व के धनी, गुदड़ी के लाल,हरित क्रांति व श्वेत क्रांति के साधक कहे जाने वाले लालबहादुर शास्त्री पर पूरे देश को गर्व है।
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