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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों का जीवन

"संघ के प्रचारक: त्याग, तपस्या और राष्ट्र निर्माण का अनूठा सफर"

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भारत का एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है, जिसकी स्थापना 27 सितंबर 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी। यह संगठन हिंदुत्व के विचार पर आधारित है और आरएसएस “राष्ट्र निर्माण” की दिशा में कार्य करने वाला संगठन है। आरएसएस का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों का संरक्षण और प्रचार-प्रसार करना है।

आरएसएस शाखा प्रणाली पर आधारित है, जिसमें स्वयंसेवक नियमित रूप से एकत्र होकर शारीरिक व्यायाम, देशभक्ति गीत, और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। संघ का मानना है कि व्यक्तिगत चरित्र निर्माण से समाज और राष्ट्र का उत्थान संभव है। यह संगठन जाति, भाषा और क्षेत्रीय विभाजनों से ऊपर उठकर “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के विचार को बढ़ावा देता है।

अधिक जानकारी के लिए संगठन की वेबसाइट https://www.rss.org/  पर विजिट करें

संघ प्रचारक बनने की प्रक्रिया

राष्ट्रीय स्वमसेवक संघ में प्रचारक बनने की राह आसान नहीं होती। एक प्रचारक बनने के लिए स्वयंसेवक को संघ की विचारधारा में गहराई से रच-बस जाना पड़ता है। संघ शिक्षा वर्ग (आरएसएस का प्रशिक्षण कार्यक्रम) में तीन चरणों की शिक्षा प्राप्त करने के बाद, स्वयंसेवक को प्रचारक बनने का अवसर दिया जाता है। इस भूमिका के लिए वे अपना पारिवारिक जीवन, व्यक्तिगत इच्छाएँ और भौतिक सुख-समृद्धि त्याग देते हैं।

त्यागपूर्ण तथा आत्मनिर्भर जीवनशैली

संघ प्रचारक का जीवन संन्यासी की तरह होता है। वे अविवाहित रहते हैं और संगठन के कार्यों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करते हैं। प्रचारकों का मुख्य उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों में राष्ट्रीय भावना का प्रसार करना और सेवा कार्यों के माध्यम से सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है।
वे किसी एक स्थान पर स्थायी रूप से नहीं रहते। उन्हें संगठन के निर्देशानुसार अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करने के लिए भेजा जाता है। प्रचारक केवल जरूरतमंदों से जुड़ते हैं, उनके साथ रहते हैं, और उनकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। प्रचारक न केवल अपना परिवार और भौतिक सुख-सुविधाएं छोड़ते हैं, बल्कि समाज में आत्मनिर्भरता का उदाहरण भी पेश करते हैं। वे बिना किसी सरकारी सहायता के अपनी जीवनशैली और कार्यक्षेत्र को संचालित करते हैं।

कार्य और जिम्मेदारियाँ

प्रचारकों की जिम्मेदारियाँ बहुत व्यापक होती हैं।

  • 1. सामाजिक जागरूकता: समाज में राष्ट्रीय एकता, स्वावलंबन, और सांस्कृतिक गौरव का प्रचार करना।
  • 2. सेवा कार्य: शिक्षा, स्वास्थ्य, और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में काम करना।
  • 3. युवा निर्माण: युवाओं को राष्ट्रनिर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित करना।
  • 4. संगठन विस्तार: नए शाखाओं की स्थापना और स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयास करना।

सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया

संघ के प्रचारकों का समाज के हर वर्ग तक पहुंचने का तरीका अत्यंत संगठित और अनुशासित है। यह जानना दिलचस्प है कि वे विभिन्न संस्कृतियों और परिस्थितियों में अपने संदेश को कैसे सटीक ढंग से प्रस्तुत करते हैं।

दैनिक दिनचर्या

प्रचारकों का दिन सादगी और अनुशासन से भरा होता है। वे सुबह शाखा में व्यायाम, प्रार्थना और बौद्धिक चर्चा के साथ दिन की शुरुआत करते हैं। इसके बाद वे समाज में जाकर लोगों से मिलते हैं, उनकी समस्याओं को समझते हैं और संघ के कार्यों को आगे बढ़ाते हैं।


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प्रेरणा और चुनौतियाँ

प्रचारकों को प्रेरणा संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार, माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी), और अन्य वरिष्ठ नेताओं के आदर्शों से मिलती है। हालांकि, उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे आलोचना, राजनीतिक दबाव, और आधुनिक जीवनशैली के प्रति युवाओं का आकर्षण। इसके बावजूद, उनका ध्येय स्पष्ट और अडिग रहता है।

समाज पर प्रभाव

आरएसएस प्रचारकों का समाज पर व्यापक प्रभाव है। उनके प्रयासों से भारत के कई हिस्सों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है। प्राकृतिक आपदाओं में उनकी सक्रिय भूमिका सराहनीय रही है। साथ ही, वे समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने में एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों का जीवन त्याग और समर्पण की अनूठी मिसाल है। उनकी सेवा-भावना और सामाजिक समरसता के प्रति प्रतिबद्धता न केवल संगठन को मजबूत बनाती है, बल्कि देश के विकास और एकता में भी योगदान देती है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सादगी और सेवा से राष्ट्र की उन्नति की जा सकती है।

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