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बेकसूरों पर साइबर ठगी का कहर, अमाउंट के बजाय अकाउंट हो रहे फ्रीज, ठगी की रकम जिस खाते के जरिए आगे पहुंचती है उस राशि को होल्ड करने का है नियम

पीपलू

रिपोर्ट – रवि विजयवर्गीय टोंक

साइबर ठगी के कई मामले हैं, जिनमें पीडि़तों के खाते में अनजान अकाउंट से पैसे आए। खुद पीडि़तों को नहीं पता कि उनके खाते में यह पैसा कहां से आया। इसका खमियाजा हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। नतीजा यह हुआ कि निर्दोष लोगों के खाते फ्रीज हो गए। अब पीडि़त अपना बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। नियमों के अनुसार साइबर ठग के खाते से पीडि़त के खाते में आने वाली राशि ‘होल्ड’ रखनी होती है, लेकिन साइबर के एक मेल बैंक खातों को ही फ्रीज कर देते हैं। पीपलू उपखंड क्षेत्र सहित जिलेभर में हजारों बेकसूर लोगों के खाते फ्रीज हो चुके हैं। इनमें भी ज्यादातर खाते भी उन दुकानदारों के हैं जो परचून समेत अन्य छोटा-मोटा कारोबार करते हैं।

सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ समय से पीपलू क्षेत्र सहित जिले के कई दुकानदार, व्यापारी ही नहीं लेन-देन करने वाले ई-मित्र तक इस घेरे में आ चुके हैं। खाता बंद होने के बाद ये पीडि़त साइबर थाने, बैंक पहुंचकर अपनी व्यथा सुना रहे हैं। रकम की लेन-देन किससे हुई, इन्हें यह तक पता नहीं होता। एक अनुमान के मुताबिक जिले में तीन साल में करीब 10 करोड़ से अधिक की ठगी हो चुकी।

  • बैंककर्मी नहीं करते सुनवाई बैंक खाते फ्रीज या लीन होने पर फरियादी बैंक पहुंचते है तो उनकी कोई सुनवाई नहीं की जाती है। पीडि़त से बार-बार सिर्फ एप्लीकेशन ली जाती है लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं की जाती है। बैंककर्मियों की ओर पीडि़त को संतोषप्रद जवाब नहीं मिलने से पीडि़त परेशान होकर इधर-उधर चक्कर लगाते है। हालांकि कई रसूखदारों के साथ लीन, फ्रीज की घटना होने पर बैंक उन्हें तो सारी जानकारियां उपलब्ध करवा देते है।

आसान है निदान पर…

साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि बैंक से पता करने के बाद संबंधित थाना प्रभारी को पीडि़त की तरफ से एप्लीकेशन देनी होती है, जिसमें रकम संबंधी लेन-देन के बिल पेश करनी पड़ती है। इसके बाद जांच कर थाना प्रभारी संबंधित बैंक को खाता शुरू करने के लिए कहेगा। बावजूद इसके ऐसा हो नहीं रहा। अब ठगी गुजरात, मुम्बई में खातों से हुई तो पीडि़त को वहां के थाना प्रभारी तक अपनी बात पहुंचाना टेढ़ी खीर हो जाता है। टोंक जिला मुख्यालय स्थित साइबर थाने के कार्मिक जरूर पीडि़त, फरियादी इसमें मदद कर रहे है।

इस चालाकी को यों समझें

उदाहरण के तौर पर सियाराम ने रामेश्वर से पचास हजार रुपए की ठगी की। सियाराम की यह रकम खाते अथवा मोबाइल/डिजिटल के जरिए जितने खातों में ट्रांसफर होगी, पोर्टल पर दर्ज एफआइआर में आटो सिस्टम के जरिए इन सभी खातों में उतनी ही राशि को ही बैंक के जरिए होल्ड कर दिया जाएगा। वर्तमान में इसका उलटा हो रहा है। नामसझी कहें या फिर कुछ और उस राशि के बजाय अकाउंट ही फ्रीज किया जा रहा है।

केस 1

पीपलू कस्बा निवासी महावीर सैनी एक स्टूडेंट है। जिसने बताया कि उसका बैंक ऑफ बड़ौदा पीपलू में खाता है। दिसंबर में उसका खाता फ्रीज कर दिया गया लेकिन उसकी जानकारी बैंक जाकर की तो कोई जानकारी नहीं दी गई। हेड ऑफिस में ईमेल के जरिए सिर्फ इतना सा बताया गया है कि गुजरात में साइबर अपराध का मामला दर्ज हुआ। पीडि़त को पता नहीं किस लेन-देन के जरिए उसका खाता फ्रीज कर दिया गया। अब चार महीने से उसका खाता बंद है। खाता शुरू करवाने के लिए उसे गुजरात पुलिस से संपर्क करना पड़ेगा। जबकि पीडि़त परिवार मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करता है। इतना ही नहीं अकांउट फ्रीज होने से कई लोग उसे सटोरिया, उल्टे-सीधे काम करने का आरोप लगाकर जलील करते हैं।

केस 2

कस्बे में परचून की दुकान वाले वेंकटेश (परिवर्तित नाम) का खाता भी कई दिनों से बंद है। उसकी ठगी का मामला कहां का है इसका भी पता नहीं। साथ ही किस ठगी के खाते से कौनसी-कितनी राशि उसके अकाउंट में आई पर राशि होल्ड करने के बजाय खाता ही फ्रीज हो गया। अब पीडि़त खाता खुलवाने के लिए दर-दर भटक रहा है।

  • इनका कहना है

बैंक के पास साइबर से मेल आते है, जिसके अनुसार ही खाते में लीन या फ्रीज का काम होता है। खाताधारक को सिर्फ साइबर की ओर से खाता संदिग्ध होने से डेबिट फ्र्रीज की जानकारी दे सकते हैं। ज्यादा जानकारी खाताधारक साइबर थाने से जुटा सकता हैं। वीरेन्द्र कपूर, शाखा प्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा पीपलू


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