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ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं : राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर


Ghevarchand Aarya
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Ghevarchand Aarya is a Author in Luniya Times News Media Website.

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974) एक प्रमुख हिन्दी आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में जाने जाते हैं। राष्ट्रवाद को अपनी कविताओं की मूल-भूमि मानने के कारण उन्हें ‘युग- चारण’ और ‘काल के चारण’ की संज्ञा दी गई। प्रस्तुत है यहां अंग्रेजी नववर्ष पर उनकी विख्यात कविता ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं।

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

है अपना ये त्यौहार नहीं

हैं अपनी ये तो रीत नहीं

है अपना ये व्यवहार नहीं ।

धरा ठिठुरती है सर्दी से

आकाश में कोहरा गहरा है

बाग बाजरो की सरहद पर

सर्द हवा का पहरा है।

सूना है प्रकृति का आंगन

कुछ रंग नहीं कुछ उमंग नहीं

हर कोई है घर में दुबका हुआ

नव वर्ष का यह ढंग नहीं ।

चंद मास अभी इंतजार करो

निज मन में तनिक विचार करो

नये साल नया कुछ हो तो सही

क्यों नकल में सारी अक्ल बही ।

उल्लास मंद है जन-मन का आयी है

अभी है अभी बहार नहीं ।

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,

हे अपना यह त्यौहार नहीं।

ये धुंध कुहासा छंटने दो

रातों का राज्य सिमटने दो

प्रकृति का रूप निखरने दो

फागुन का रंग बिखरने दो।

प्रकृति दुल्हन का रूप धार

जब स्नेह सुधा बरसायेगी

शस्य -श्यामला धरती माता

घर घर खुशहाली लायेगी।

तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि

नव वर्ष मनाया जायेगा

आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर

जय गान सुनाया जायेगा ।

युक्ति प्रमाण से स्वयं सिद्ध ,

नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध

आर्यों की किर्ति सदा सदा

नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ।

अनमोल विरासत के धनिकों को

चाहिए कोई उधार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं।

ये अपना है त्योहार नहीं

है अपनी ये रीत नहीं

है अपना ये त्यौहार नहीं ।।

 – घेवरचंद आर्य पाली

Khushal Luniya

Khushal Luniya is a young kid who has learned HTML, CSS in Computer Programming and is now learning JavaScript, Python. He is also a Graphic Designer. He is playing his role by being appointed as a Desk Editor in Luniya Times News Media Website.

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