समर्पित शिष्य को गुरु के आशीर्वाद से मिलती हैं सभी सिद्धियाँ

- उदयपुर
श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, मालदास स्ट्रीट–उदयपुर में विराजित जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में चातुर्मासिक प्रवचन प्रारंभ हुए। इस शुभ अवसर पर आयोजित धर्मसभा में “श्री योगशास्त्र ग्रंथ” का अर्पण डॉ. शैलेन्द्र हिरण, नरेन्द्रजी सिंघवी, भोपालजी सिंघवी एवं हेमन्त सिंघवी द्वारा किया गया, तथा “भगवान महावीरस्वामी पट्टधर परंपरा ग्रंथ” प्रकाश रणजीतजी मेहता एवं राजेशजी जावरिया परिवार द्वारा समर्पित किया गया।
प्रवचन में जैनाचार्य श्री ने गुरु–शिष्य परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कहा:
“पानी की एक बूंद सभी जगह समान होती है, परंतु जिस पात्र में वह गिरे, उसके अनुसार उसका प्रभाव बदल जाता है। तपे हुए तवे पर गिरे तो जलकर उड़ जाती है, पर्वत पर गिरे तो व्यर्थ जाती है, खेत में गिरे तो सिंचाई करती है, और यदि समुद्र में मिले तो अक्षय बन जाती है। इसी प्रकार गुरु की कृपा भी सभी शिष्यों के लिए एक समान होती है, परंतु समर्पण एवं पात्रता के अनुसार उसका फल प्राप्त होता है। जो शिष्य पूर्ण समर्पण के साथ गुरु से जुड़ता है, वही सभी सिद्धियाँ प्राप्त करता है।”

जैनाचार्य श्री ने महान आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की ऐतिहासिक प्रभावना का स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में दीक्षा ली और 84 वर्ष की आयु तक रहते हुए साढ़े तीन करोड़ श्लोक प्रमाण संस्कृत–प्राकृत ग्रंथों की रचना की। उन्होंने गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल को धर्मोपदेश देकर जैनधर्म की महान प्रभावना की। राजा कुमारपाल के आग्रह पर आचार्यश्री ने “योगशास्त्र” की रचना की थी, जिससे प्रेरित होकर राजा ने 18 देशों में अहिंसा धर्म का प्रचार–प्रसार करवाया।
प्रवचन कार्यक्रम:
- प्रतिदिन प्रातः 9:30 बजे प्रवचन आयोजित होंगे।
- 20 जुलाई को जैनाचार्य द्वारा संपादित “सिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासनम्” (भाग 1 से 4) का भव्य विमोचन किया जाएगा।
- इसी दिन “नमो श्रुतज्ञानम् – नमो श्रुतज्ञानी” नामक संगीतमय कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया जाएगा।
- यह चातुर्मास, धर्म एवं साधना की दिशा में श्रद्धालुओं के लिए एक अमूल्य अवसर सिद्ध होगा।














