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ताराबाई मोडक भारत में विद्यालयीन पूर्व शिक्षा की प्रवर्तक

ताराबाई मोडक का गुणवत्ता युक्त जीवन हम सबके लिए प्रेरणा है, शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए नवासारो को आप इस लेख में पढ़ेंगे।

लेखक-विजय सिंह माली(प्रधानाचार्य)

श्री धनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी (पाली) मोबाइल 9829285914 vsmali1976@gmail.com

भारत के शिक्षा जगत में बीसवीं सदी में बाल केंद्रित मोटेंसरी पद्धति का पथ प्रशस्त हुआ।गिजुभाई बधेका,सरला देवी साराभाई, ताराबाई मोडक जैसे कई शिक्षा साधक उस राह पर चल पड़े। भारतीय परिवेश में मोंटेसरी के शैक्षिक दर्शन को आत्मसात कर विद्यालयीन पूर्व शिक्षा शुरू करने वाली तारा बाई मोडक को भारत में विद्यालयीन पूर्व शिक्षा का अग्रदूत माना जाता है।

ताराबाई मोडक का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में मराठी भाषी केलकर परिवार में सदाशिव पांडुरंग केलकर की धर्मपत्नी उमाबाई केलकर की कोख से 19 अप्रेल 1892 को हुआ। इनका परिवार प्रार्थना समाज से जुड़ा हुआ था। 1902में इनका परिवार पूणे स्थानांतरित हो गया। 1906में इनका परिवार मुंबई आ गया। मुंबई में 1916में ताराबाई ने स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त की। इसी वर्ष इनका विवाह अमरावती के वकील के वी मोड़क से हो गया।विवाहोपरांत ताराबाई अमरावती आ गई।

यहां सरकारी विद्यालय में नौकरी की। मोडक से इन्हें पुत्री हुई। इनका दांपत्य जीवन लंबा नहीं चला। 1921में तलाक हो गया। सुशिक्षित ताराबाई राजकोट में बार्टन महिला कालेज आफ एजुकेशन की प्रथम भारतीय प्राचार्य बनी।

यहीं वह यूरोप की महान् शिक्षाविद् मारियो मोंटेसरी की पुस्तक को पढ़कर मोंटेसरी पद्धति से प्रभावित हुई। उसने अपनी पुत्री को मोंटेसरी पद्धति के अनुरुप शिक्षित करने का निर्णय किया। 1923 में ताराबाई ने महाविद्यालय से त्यागपत्र दे दिया और गिजुभाई बधेका से जुड़ गई जिन्होंने भावनगर में एक प्री प्राइमरी स्कूल चलाया और‌ मोंटेसरी के सिद्धांतों का प्रचार किया।

1926में ताराबाई ने गिजुभाई के सहयोग से मुंबई के दादर स्थान पर शिशु विहार नाम से पूर्व प्राथमिक विद्यालय खोला। इस विद्यालय का ध्येय वाक्य था-बाल देवो भव।

इस शिशु विहार व शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र के प्रचार व विकास के लिए बधेका जी के सहयोग से नूतन बाल शिक्षा संघ की स्थापना की। 1945में उन्होंने ठाणे जिले के बोर्डी गांव में ग्राम बाल शिक्षा केंद्र की स्थापना की जिसे 1957में कोसबाड में स्थानांतरित कर दिया।

ताराबाई मोडक के मार्गदर्शन में कोसबाद में विकासवादी योजनाएं चलाई गई। 1946 से 1952 तक वह बंबई विधान सभा की सदस्य रहीं। 1949 में इटली में आयोजित मोंटेसरी सम्मेलन में भाग लेने व यूरोपीय देशों में पूर्व प्राथमिक संस्थाओं का निरीक्षण करने के लिए यूरोप का दौरा किया।

ताराबाई मोडक 25 वर्षो से अधिक समय नूतन बाल शिक्षा संघ की महासचिव रही। बाद में इसकी उपाध्यक्ष बनी। ताराबाई ने अपने जीवन के अंतिम 27वर्ष कोसबाद के जनजातीय बहुल क्षेत्र में विकासवादी परियोजना के लिए समर्पित किए। इस काम में अनुताई वाघ भी उनकी सहयोगी बनी।1962मेंपूर्व स्कूली शिक्षा में उल्लेखनीय कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया।

ताराबाई मोडक ने मराठी और गुजराती में बच्चों और मातापिता के लिए कई किताबें लिखी। नदीची गोष्ट, बालकांचा भट्ट, बिचारी फाल्के,सवाई विक्रम प्रमुख हैं। उन्होंने अंग्रेजी में भी बाल शिक्षा पर किताबें लिखी। उन्होंने गिजुभाई की मासिक पत्रिका शिक्षण पत्रिका का हिंदी व मराठी में संपादन भी किया।

31अगस्त1973 को ताराबाई मोडक का देहावसान

ताराबाई मोडक अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में पूर्व प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती है।आज की आंगनवाडिया उनका ही शैक्षिक अवदान है।

उन्होंने प्री स्कूल के ग्रामीण पेटर्न के रुप में गांव के आंगन/खुली जगह में आंगनबाड़ी खोली जिसकी देखभाल गांव की महिला करती है जिसे खेल तकनीक व बच्चों की देखभाल के बुनियादी सिद्धांतों का प्रशिक्षण दिया जाता है। आंगनबाड़ी में शिक्षण और सीखने के लिए साधारण स्थानीय उपकरणों का उपयोग किया जाता है। उनके इस तरीके से आदिवासी क्षेत्र में मूक क्रांति आ गई।

ताराबाई मोडक ने भारत में विद्यालय पूर्व शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया अतः उन्हें भारत में मोंटेसरी मदर नाम से भी जाना जाता है। आज प्रत्येक आंगनवाड़ी को विद्यालय से समन्वित कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की आवश्यकता है यही ताराबाई मोडक को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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